Sep 27, 2018

फिर क्यूँ तुम..



विधाः गज़ल
विषय: बाजार


हसरतों के बाजार में सब्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ तुम तड़पते विस्मिल की तरह।

बाजार-ए-दस्त में  खड़ा जज़्ब-ए-फाकाकश है 
फिर क्यूँ ये वादे साइल की तरह।

तिजारत-सरे-बाजार में तलबगार खुश है
फिर क्यूँ तुम गुजरे गाफिल की तरह।

शोख,वफा,जज़्ब में हिज्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ ये ठहरे साहिल की तरह।

ताजिरो की नियाज से आलिमों की जुबां खामोश है
फिर क्यूँ तुम तड़पे दुआ-ए-दिल की तरह।
                                  ©पम्मी सिंह 'तृप्ति'.. ✍
(गाफिल-भ्रमित, विस्मिल-घायल, साइल-याचक,
ताजिरो-व्यापारी, तिज़ारत-रोजगार, व्यपार, तलबगार- इच्छा रखना, नियाज-भिक्षा, दुआ ए दिल-हृदय की प्रार्थना, जज्ब ए फाकाकश-भूखे रह जीने की भावना)

Sep 25, 2018

स्त्री विशेष कहानी




"बिखरते पलछिन", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/x4ywR76Oj5iv?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

Sep 20, 2018

Sep 13, 2018

सायली छंद

सायली छंद



तुम्हें
ख्याल नहीं
किताबों के गुलाब
आज भी
मुस्कुराते।

🌸

तुमने
जो थामा
कोमल उँगलियों से,
मन मुदित
हुआ।

🌸

स्नेह
से संवरकर
संदल हाथों ने
घर बना
दिया।

🌸

गुजरी
तुफानो से
हालत से संभलकर,
हिदायतें लिख
दी।

🌸

बिखरे
फूल पत्तियाँ,
शीतल आस लिए
आंचल समेटे
बैठी।

🌸
©पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

Sep 3, 2018

जय श्री कृष्णा



।।दोहे।।

कर्तव्य पाठ के ज्ञान में,है प्रभु का नित नाम।
धन्य हुआ गोकुल धाम,आपको नित प्रणाम।।


कुरुक्षेत्र की रणभूमी से, बांचे मोक्ष,मुक्ति ज्ञान।
गीता का सार अनुप ,कर्म ही  सदा प्रधान।।
                 पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍


Aug 31, 2018

दोहे..



31अगस्त2018
दोहे
विषयःमुनि



1.

मुनि औरों का हित करें,चाहे नित आत्म ज्ञान ।
सच्चे मन से मनन करें, मिल जाएँ भगवान।।

2.
धुनी रमाकर हित करें,अंधकार को दूर।
निज हित से उपर रहे, उस पर रब का नूर।।

3.
तिलक तावीज से भान,  घूमते चहूँ ओर।
सद्गुण ही पावन निधान, क्यूँ  करते सब शोर।।

4.
सद् मुनि  वंदन चिर निरुपम, करते जग का ज्ञान।
सृष्टि वंदन चिर निरुपम, इसका भी करों ध्यान।।

5.
 दिव्यपुंज करते समस्त  भाव को,जोड़ते हर
विधान।
निश्च्छल करते हृदय को,हैं सारे एक समान।।


6.
श्रेय और प्रेय के भाव, अपने मन का पीर।

तृष्णा है सबके भाव, रख लो मन का धीर
                       © पम्मी सिंह 'तृप्ति'.✍

Aug 20, 2018

सृष्टि चिर निरुपम...




सृष्टि चिर निरुपम
अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण 
आत्मा का न संस्करण 

किंजल्क  स्वर्ण सरजीत
समस्त भाव
दिव्यपुंज दिव्यपान
प्रज्ञा का भाव

जागृत सुप्तवस्था
निर्गुण निर्मूल
अविवेका,

निः सृत वाणी
अस्तु आरम्भ
सदा निर्विकारी

कर्म अराधना
विकर्म विवेकशून्य
निष्काम कर्मयोग अनुशीलन

संघर्षरत वृत्ति
यदा कदा प्राप्तव्य
अज्ञान निवृत्ति 
यजन प्रवृत्ति

संसृति संकल्प
श्रेय और प्रेय विकल्प
व्यष्टिक चेतना अल्प
जटिल सार्विक क्रियाकलाप

स्वार्थ सर्वव्यापी
संकल्पता,साकारात्मक
यथार्थ जीवन का
प्रतिपादित कर्म

                                     ©पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍






अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...