May 26, 2019

जल संरक्षण..



एहतियात जरूरी है,घर को बचाने के लिए।
पेड़-पौधे ज़रूरी है,ज़मीन को संवारने के लिए।।

कर दिया ख़ाली ,जो ताल था कभी भरा ।
 मौन धरा पूछ रही, किसने ये सुख हरा।।

दरक रही धरती की मिट्टी, उजड़े सारे बाग।
 त्राहि - त्राहि मचा रहा, छेड़ो अब नये राग।।

जल ही कल का जीवन है,कर लो इसका भान।
जो समय पर न चेते,खतरे में होगी अपनी जान।।

सोम - सुधा बरसाता ,ये ताल - तलैया है जिंदगी।
संरक्षित करों बूंद - बूंद को,अब यही है बंदगी।।
                             पम्मी सिंह'तृप्ति'
                                         दिल्ली

बदलेगी कौम की तकदीर..



बदलेगी कौम की तकदीर..





नरेंद्र मोदी की आध्यात्मिक साधना महज नहीं दिखावा हैं
अध्यात्म संस्कृति,अजस्र उर्जा से विश्व को राह दिखाना है।


जम्हूरियत की ये मिसाल महज नहीं एक फसाना है,
इक नई छब से इबारत लिख मुल्क को सवारना है।



बदलेगी कौम की तकदीर, ये आस भी जगाई है,
नए इबारत के आस में एक अलख तो जलाई है।

जो गुजर गए आँधियों से,शाखें वहीं बचती है,
जो उभर गए आँधियों से,शख्सियत वहीं निखरती है।

राष्ट्रवाद के जद में नया परचम लहराया है,
इक खुशनुमा परचम तले ख्वाब आँखों में उतर आया है।

रहे ये जज़्बा कायम कर्मपथ के राहों में
जीव ही शिव है के संदेश में भावी भारत समाया है।
©पम्मी सिंह 'तृप्ति'

May 11, 2019

जब भी घिरती हूँ..





विधा- मुक्त 
विषय- माँ , मातृ दिवस

जब  भी घिरती हूँ...

बाकी सब जहाँ के रवायतों में सहेज रखा ..
पर.. जब भी घिरती हूँ दुविधाओं में 
माँ..सच तेरी, बहुत कमी खलती है,

मुख्तलिफ राहों में तूने ही तो संभाला है
अब हवा दुखों की तब्दील  होती नहीं 
सर पे हथेलियों की गर्माहट महसूस करती नहीं 

क्यूँ ये हालात हैं? जो मजबूर है इतना
जो ख़ाली बैठी रही,,अपनी ज़ात से,
काश ! वो लम्हा ठहर जाता..

क्यूँ जरूरी बन जाता है.. इस तरह से बिछड़ना, 
कि बिछड़ें भी तो दिल में बस जातें हैं,
वो वक्त का सिकंदर मौजूद है हमारे दर्मियान..

जहाँ की रस्मों के खातिर,अपने आस्ताँ पे हैं खड़े 
और दिलों में उठती हर कसक को दबाना पड़ता है,
पर कहते हैं, हथेलियों की बची ख़ुशियाँ, दुखों पर ही भारी बनता है

ये कैसा क़र्ज़..था.. दुआओं में,
 दूर हूँ.. बड़ी..महफ़ूज़ हूँ,
जीते जी तो कह ना सकी
पर जब भी घिरती हूँ..मॉ
 सच्ची तेरी बहुत याद आती है..।
               पम्मी सिंह ‘तृप्ति’
                  दिल्ली

May 8, 2019

Back to old streets..




The Times of India (campus corner)

When we compare university and college teachers with other professionals, the question automatically arises as to why should a doctor, a lawyer, an architect, an engineer or an administrative officer work for nine to ten hours everyday when a teacher has to work only for a couple of hours, at times even less.
Our present education system is decaying and deteriorating only because of the lack of accountability on the part of the teachers and damaging indifference of the authorities, The teaching community no longer present the highest standard of social behaviour it once did. It neglects its work , indulge in favouritism and is always busy in private tuitions. In the process it damages not just its reputations, but the entire society has as well .
There are few teachers who take teaching and research seriously, let alone other attributes which one might look for in them Mr.W.M.Welch has said," The personal influence of teacher in moulding the character of his /her student is the most important element in their education. In words he cannot teach.. his life talks more forcibly and sooner believed by children and adults. A teacher has to fulfill his responsibility towards his students, their parents, society and Nation by being a mediator of learning a scholar a judge a public servant a community leader and an agent of social change." Needless to say, Bihar's teachers are far removed from this ideal.
Pammi Singh.

पुरानी गलियाँ..



दिल्ली प्रेस से प्रकाशित पत्रिका सरिता मई( प्रथम)1995अंक..


सरिता के मई प्रथम अंक में मैं ने आपकी समस्या पढ़ी. मुझे महसूस हुआ कि आप की समस्या इतनी ज्यादा गंभीर नहीं है कि इसे सुलझाया ना जा सके .आपने लिखा है कि आपकी मां का स्वभाव अच्छा नहीं है .इस कारण आप दुखी रहती हैं और आत्महत्या जैसे ही विचार आपके मन में उठने लगते हैं आगे आप लिखते हैं कि आप मनोवैज्ञानिक बनना चाहती हैं बन पाएंगीं या नहीं.
सबसे पहले मैं आपको यही विश्वास दिलाना चाहती हूं कि दुनिया में कोई भी काम करना मुश्किल नहीं है .सिर्फ आत्म बल की आवश्यकता होती है जिसकी आप में कमी है आप अपने में आत्म बल पैदा कीजिए और खुश रहने की चेष्टा कीजिए . मनोवैज्ञानिक बनने का प्रथम प्रयास आप अपने घर से ही शुरू कर सकती हैं .
आपने अपनी मां के चिड़चिड़े और बुरे स्वभाव को तो देखा है पर क्या आपने इसके कारण को जानने की भी कभी चेष्टा की है ? हो सकता है आपकी मां को जीवन में किसी खास कमी का सामना करना पड़ता हो ,जैसे कोई शारीरिक या आर्थिक कमी अथवा फिर घर वालों से प्यार की कमी जिसमें आप के पिता का भी अहम रोल हो सकता है ,ऐसी कमियों में से किसी भी कमी के कारण उनका बर्ताव आपके पिता के साथ अच्छा ना रहता हो जिसे वह उन से लड़ झगड़ कर कह कभी लेती है .
आप कहती हैं कि आपके पिता ठंडे स्वभाव के हैं और वह चुप रहते हैं. यह भी तो हो सकता है कि आपके पिता उन कमियों को दूर ना कर पाने के कारण चुप रहते हो जिससे आपकी मां और भी चिढ़ जाती हों.
आपकी उम्र 16 साल है और इस उम्र में तो लड़कियां अपनी मां को एक सखी के रूप में पाती हैं ,और एक आप हैं जो अपनी मां से नफरत करती है .सबसे पहले आप अपने आप को खुश रखने का प्रयास कीजिए और अपने मां से हमदर्दी करना शुरू कीजिए. शुरू शुरू में हो सकता है कि आपको थोड़ा कठिन लगे परंतु धीरे-धीरे आप अवश्य ही अपनी मां का विश्वास जीत लेंगी.आप के हमदर्दी उनके स्वभाव में परिवर्तन ला सकेगी.
आप अपनी मां के परेशानी जान कर अपने पिता से भी सलाह कर सकती हैं. उनसे मिलकर ही आप अपनी मां की परेशानी को दूर कर सकती है.
कभी कभी कोई परेशानी ऐसी भी होती है जिससे एकदम से दूर करना संभव नहीं होता जैसे कि आर्थिक या शारीरिक परेशानी . इसके लिए अगर आप सब मिलकर एकजुट हो जाएंगे तो दुख, तकलीफ बांटी जा सकती है. और धीरे-धीरे दूर भी की जा सकती है .एक प्यार ही ऐसी चीज है जिससे परेशानी की घड़ियों में राहत मिल सकती है .
फिर देखिएगा कि आपके भाई में भी स्वयमेव परिवर्तन आ जाएगा क्योंकि इस वक्त आपके घर का वातावरण ही कुछ ऐसा है कि जिसमें आप मायूस रहती हैं और आपकी मां चिड़चिड़ी जब यह कमियां दूर होंगी तो आपके भाई को भी घर का असली आनंद मिलेगा .
इसलिए मेरी राय यही है कि आप अपने में मनोबल बढ़ा कर अपने घर की स्थिति को संवारें.
पम्मी सिंह

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...