एहतियात जरूरी है,घर को बचाने के लिए।
पेड़-पौधे ज़रूरी है,ज़मीन को संवारने के लिए।।
कर दिया ख़ाली ,जो ताल था कभी भरा ।
मौन धरा पूछ रही, किसने ये सुख हरा।।
दरक रही धरती की मिट्टी, उजड़े सारे बाग।
त्राहि - त्राहि मचा रहा, छेड़ो अब नये राग।।
जल ही कल का जीवन है,कर लो इसका भान।
जो समय पर न चेते,खतरे में होगी अपनी जान।।
सोम - सुधा बरसाता ,ये ताल - तलैया है जिंदगी।
संरक्षित करों बूंद - बूंद को,अब यही है बंदगी।।
पम्मी सिंह'तृप्ति'
दिल्ली
सोम सुधा बरसाता ,ये ताल तलैया हैं जिंदगी।
ReplyDeleteसंरक्षित करों बूंद बूंद को,अब यहीं हैं बंदगी।।
बहुत बढ़िया, पम्मी दी।
जी,धन्यवाद।
ReplyDeleteजल ही जीवन है ...
ReplyDeleteये न होगा तो क्या होगा यही सोच के दहल जाता है दिल ...
बहुत सुन्दर और गहरी रचना ...
प्रतिक्रिया हेतु आभार..
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 जून 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteवाह!!लाजवाब रचना पम्मी जी । जल ही जीवन है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सार्थक सृजन सुंदर संदेश के साथ।👌
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
ReplyDeleteपानी की कमी पर भयावहता, साथ ही चेतावनी के स्वर, सुंदर शब्द संयोजन के साथ सार्थक विषय पर सार्थक रचना पम्मी जी बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteपम्मी दी,पानी का महत्व बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने।
ReplyDeleteहौसलाअफजाई के साधुवाद।
Deleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteआदरणीया क्षमा करिये ! त्रुटि सुधार करें !
ReplyDelete१. जरूरी में नुक़्ता लगायें !
२. खाली में नुक़्ता लगायें ! जैसे ख़ाली
३. पुछ को पूछ करिए !
४. मौन धरा पुछ रही ,किसने ये सुख हरा।। कृपया मुझे बताएं, इस वाक्य का भावार्थ जो निकल रहा है उसके अनुसार जो आपने चिन्हों ( दो बार पूर्ण विराम ) का प्रयोग किया है व्याकरण नियम के अनुसार क्या यह उचित है कृपया मुझे बताइये, यह नियम किस हिंदी व्याकरण की पुस्तक में लिखा है। ( क्योंकि आपलोगों ने इस ग़लत नियम को हिंदी साहित्य की परंपरा का स्वरूप दे दिया है जिसे लोग सत्य मानकर उसका अनुसरण करते जा रहे हैं और इन चिन्हों को बिना वाक्य के भावार्थ समझे फैशन की तरह प्रयोग में ला रहे हैं ) साहित्य में यह ग़लतियाँ क्षम्य नहीं हैं !
५. छेड़ों का कोई मतलब नहीं होता सही शब्द है छेड़ो
६. खतरे में नुक़्ता लगाएं !
७. सोम सुधा ऐसे लिखें ! जैसे सोम-सुधा
८.ताल तलैया ऐसे लिखें ! जैसे ताल-तलैया
टिप्पणीकर्ता हिंदी साहित्य की मर्यादा और व्याकरण का ध्यान रखें और भविष्य में हिंदी की दुर्दशा पर घड़ियाली आँसू बहाना बंद करें ! क्योंकि इसकी बर्बादी के ज़िम्मेदार आप स्वयं हैं क्योंकि आप सभी व्याकरण की अनदेखी निरंतर करते जा रहे हैं जिसका परिणाम भविष्य में बहुत ही भयंकर होगा।
जैसे वर्तमान में हिंदी व्याकरण की अनदेखी = त्रुटिपूर्ण साहित्य , भविष्य में त्रुटिपूर्ण साहित्य + लेख़क की हठधर्मिता = सड़कछाप हिंदी साहित्य = कूड़ा साहित्य = हम सब ज़िम्मेदार
अँग्रेज़ी साहित्य = व्याकरण का समुचित प्रयोग हमारे भारतीय भाइयों और बहनों द्वारा बड़ी ही श्रद्धा से = उच्चकोटि का साहित्य भविष्य में
Deleteदोहा, श्लोक,छंद आदि विधा की पहली पंक्ति के अंत में एक पूर्ण विराम (।) तथा दूसरी पंक्ति के अंत में दो पूर्ण विराम (।।) लगाने की प्रथा है।
उसी के तहत लगाई है।
अगर आप और नियम जानते हैं तो कृपया यहीं बताएँ ताकि भविष्य में होनेवाली त्रुटियों से बचा जा सके।
संक्षिप्तता,स्पष्टता, सरलता उपर्युक्त विषय के साथ सार्थक बन रही है।
बेशक मात्रिक गणना के तहत रचना दोहा, रोला विधा के अंतर्गत नहीं है, पर इसे मुक्त काव्य के अंतर्गत देखे।
न ही मैने किसी खास विधा का उल्लेख की। कुछ नीतिगत कथनों को खास विषय में समेटती रचना है इससे ज्यादा कुछ नहीं।
आपकी चिंता जायज है।टिप्पणी साकारात्मक है।
त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षित करने के लिए धन्यवाद।
विश्लेषणात्मक समीक्षा = श्रेणीगत (रचना)साहित्य
धन्यवाद।
विश्लेष्णात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteत्रुटियों पर ध्यानाकर्षित करना उच्च कोटि के साहित्य के लिए जरुरी है।
सुन्दर। बहुत सुन्दर भाव।
ReplyDeleteकर दिया ख़ाली ,जो ताल था कभी भरा ।
ReplyDeleteमौन धरा पूछ रही, किसने ये सुख हरा।।
हर प्रकृति प्रेमी इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है | सार्थक रचना जो जल संरक्षण की ललक जगाती है | सस्नेह शुभकामनायें प्रिय पम्मी जी |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 30 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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