Feb 24, 2017

बस यहीं हूँ..



हूँ ..

बस  यहीं  हूँ..


कहीं  और  नहीं  जरा  भंवर  में  पड़ी  हूँ...


दरपेश  है आसपास  की  गुज़रती   मसाइलो  से


गाहे  गाहे  घटती  मंजरो  को  देख,


खुद  के  लफ्ज़ों  से  हमारी  ही  बगावत  चलती  है


गो  तख़य्युल  के  साथ-साथ  लफ़्जों  की  पासबानी  होती  है,  


कुछ  खास  तो  करती  नहीं.. .पर


खुद  बयानी  सादा-हर्फी  पर  हमारी  ही  दहशत  चलती  है,


क्या  करु...


खिलाफ़त  जब  आंधियाँ  करती  है  तो  जुरअत  और    बढती  है। 

                                                                                             ©पम्मी सिंह  

(दरपेश -सामने,   मसाइलो -मुसिबत,  तख़य्युल -विचारो, ,पासबानी-पहरेदारी,जुरअत-हौसला )




                                                                                                       

                                

Feb 4, 2017

संयोग..



कुछ शक्तियाँ विशाल व्यापक और विराट् है

जिसमें हम खुद को सर्वथा निस्सहाय पाते हैं
हाँ...वो 'संयोग ' ही है

जो हमारे वश से बाहर होती है
बादलों के चाँद,सितारें, राशियाँ और वो एक समय

न जाने ब्रह्मांड में छुपी तमाम शक्तियाँ..
मिलकर इक नयी चाल चलती .. जहाँ हम

चाह कर भी कुछ न कर सकने की अवस्था में पाते हैं तब..

.कुछ टूटे सितारों की आस में
हर रात छत से गुज़र जाती हूँ

आधे -अधूरे बेतरतीब इखरे-बिखरे
पलों,संयोग को समेटते हुए न जाने

कई संयोग वियोग में बदल ..
रह जाती है बस वही इक ...कसक

जी हाँ .. ये कसक

अजीब सी कशाकश की अवस्था
जब्त हो जाती है..
फिक्र पर भी बादल मडराते है,

कुछ सुनना था,जानना था या ...
.बस जरा समझना था
पर...

देखों यहाँ भी संयोग और समय ने अपनी
महत्ता बता दी...

हर जानी पहचानी शक्ल अचानक अज़नबी बन जाती है..

वाकिफ हूँ इस बात से

कुछ शक्तियाँ विशाल व्यापक और विराट् होती है..
                                                                             ©पम्मी सिंह'तृप्ति'      
                                                                           



अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...