May 31, 2023

'प्रेम की पगडंडी

 





हर तरह से खैरियत है ,होनी भी चाहिए,

गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें,

तो फिर क्या बात है..!!

पर....

कहॉं आसान होता है,

शब्दों में बयां करना।

एक शब्द जो धड़कता है

हर दिल में..वो ' प्रेम ',और उसके रूप और नजरिया।

आसान नहीं होता ज़ज्बातों की गिरहो को खोलना.. तोलना.. फिर बोलना।

वक्त के चाक पर चलते हुए यही बोलना कि...

यूं तो जिंदगी के राह में है काफ़िले हजार ,

हमनवां है अब रहगुजर के संग ओ खार,

पर..…

रह जाता है कुछ न कुछ

और बिखरता है कुछ खास अंदाज में तो बनती है पगडंडिया..


इसी के साथ पेशकश है पुस्तक 'प्रेम की पगडंडी '

पृष्ठ संख्या- 57 पर मेरे शब्द रूपी रंग है,सभी कहानियों पर नज़र डालें आशा ही नहीं विश्वास है आप सभी भी ज़रूर डूबेंगे ✍️

क्यूंकि सफ़हो पे रकम कर देने से अनकहे लफ्ज़ बोल उठती है।

पम्मी सिंह 'तृप्ति' 


(संग-पत्थर, खार-कांटा, हमनवां -मित्र, रहगुजर -रास्ते,सफ़हा-पन्ना, रकम-लिखना)

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अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...