Aug 21, 2017

तुम चुप थी उस दिन....




तुम चुप थीं उस दिन..


पर वो आँखों में क्या था...?



जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की,


तमाम गुजरे, पलों के फ़साने दफ़्न कर.. 



लफ्ज़ों  ने उन लम्हों से शिकायत की.


जिंदगी की राहों से जो गुज़री हो 


जो ज़मीन न तलाश कर सकी ,


मसाइलों की क्या बात करें...


ये उम्र के हर दौर से गुज़रती है.



अजीब कश्मकश थी...


हर यादों और बातों से निकल कर भी


अतीत के मंज़र को ढूँढती थी वो आँखें..


पम्मी सिंह

40 comments:

  1. कहीं ज़ज्बातों के तूफान आँखों से फना तो नहीं हो रहे! अजीब कशमकश!बहुत उम्दा!!!

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  2. बहुत सुंदर रचना

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  3. मौन कहाँ होते है दिल के जज़्बात/सुगबुगाते है आँखों में हज़ारों बयानात।
    बहुत सुंदर लिखा आपने पम्मी जी।

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  4. लंबा वक़्त लिया है पम्मी जी ने इस रचना के सृजन में।
    लब सिले हों तो शगुफ़्ता वादियों में आकर
    सबा सरगोशियों में कुछ तो कहती है
    जो मन को भाता है।
    बहुत मार्मिक प्रस्तुति है आपकी पम्मी जी, बधाई।

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  5. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति गुरूवार 24 अगस्त 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 769 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

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  6. अतीत जो भुगता हुआ होता है ... मन तो वहीं जा के अटकता है चाहे गुज़र जाओ उन लम्हों से ... फिर जाओ तो कहाँ जाओ ... बचपन में भी तो हर बार लौटने का मन होता है ...

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  7. तुम चुप थी उस दिन ,पर वो आँखों मे क्या था ,
    सही मे पम्मी जी जीवन जितना आसान लगता है ,उतना आसान होता नही ,बहुत सुन्दर रचना ।

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  8. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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    1. आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।

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  9. अतीत के मंजर को ढूँढती थी वो आँखें....
    वाह!!!
    मर्मस्पर्शी रचना...

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  10. Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  11. आदरणीय "पम्मी" जी अतिसुन्दर सृजन लघु शब्द गंभीर मर्म लिए हुए।
    उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

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  12. अजीब कश्मकश थी...

    हर यादों और बातों से निकल कर भी

    अतीत के मंज़र को ढूँढती थी वो आँखें.
    बहुत सुन्दर !!

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    1. जब लब खामोश होते हैं तब आँखें कुछ ज्यादा ही बोलने लगती हैं ! बेहद खूबसूरत भाव।

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    2. धन्यवाद मीना जी, बहुत प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया। आभार।

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  13. बहुत खूबसूरत लिखा है 👏👏👏

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    1. जी धन्यवाद, बहुत प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया,
      आभार।

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  14. आँखों ने राज खोल दिए - जो जुबां ने छुपा लिए -
    बहुत थामे दर्द जिगर ने - आँखों ने छलका दिए --
    आदरनीय पम्मी जी आँखों की खामोश जुबान कभी झूठ नहीं बोलती | उस ख़ामोशी को सुंदर शब्द दिए आपने -------- रचना के लिए सस्नेह बधाई ------

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    1. धन्यवाद रेणू जी, बहुत प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया। आभार।

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  15. आदरणीय आपकी एक -एक पंक्तियाँ लाज़वाब हैं बहुत सुन्दर
    उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ

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  16. आपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  17. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 22 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय..

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