तुम चुप थीं उस दिन..
पर वो आँखों में क्या था...?
जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की,
तमाम गुजरे, पलों के फ़साने दफ़्न कर..
जिंदगी की राहों से जो गुज़री हो
जो ज़मीन न तलाश कर सकी ,
मसाइलों की क्या बात करें...
ये उम्र के हर दौर से गुज़रती है.
अजीब कश्मकश थी...
हर यादों और बातों से निकल कर भी
अतीत के मंज़र को ढूँढती थी वो आँखें..
पम्मी सिंह
कहीं ज़ज्बातों के तूफान आँखों से फना तो नहीं हो रहे! अजीब कशमकश!बहुत उम्दा!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमौन कहाँ होते है दिल के जज़्बात/सुगबुगाते है आँखों में हज़ारों बयानात।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आपने पम्मी जी।
आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteलंबा वक़्त लिया है पम्मी जी ने इस रचना के सृजन में।
ReplyDeleteलब सिले हों तो शगुफ़्ता वादियों में आकर
सबा सरगोशियों में कुछ तो कहती है
जो मन को भाता है।
बहुत मार्मिक प्रस्तुति है आपकी पम्मी जी, बधाई।
आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति गुरूवार 24 अगस्त 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 769 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteअतीत जो भुगता हुआ होता है ... मन तो वहीं जा के अटकता है चाहे गुज़र जाओ उन लम्हों से ... फिर जाओ तो कहाँ जाओ ... बचपन में भी तो हर बार लौटने का मन होता है ...
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteतुम चुप थी उस दिन ,पर वो आँखों मे क्या था ,
ReplyDeleteसही मे पम्मी जी जीवन जितना आसान लगता है ,उतना आसान होता नही ,बहुत सुन्दर रचना ।
आपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी सृजन को सम्बल प्रदान करती है। हार्दिक आभार।
Deleteअतीत के मंजर को ढूँढती थी वो आँखें....
ReplyDeleteवाह!!!
मर्मस्पर्शी रचना...
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।
Deleteआदरणीय "पम्मी" जी अतिसुन्दर सृजन लघु शब्द गंभीर मर्म लिए हुए।
ReplyDeleteउम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।
Deleteबहुत सुंदर Visit cnnhub.com!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteअजीब कश्मकश थी...
ReplyDeleteहर यादों और बातों से निकल कर भी
अतीत के मंज़र को ढूँढती थी वो आँखें.
बहुत सुन्दर !!
जब लब खामोश होते हैं तब आँखें कुछ ज्यादा ही बोलने लगती हैं ! बेहद खूबसूरत भाव।
Deleteधन्यवाद मीना जी, बहुत प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया। आभार।
Deleteबहुत खूबसूरत लिखा है 👏👏👏
ReplyDeleteजी धन्यवाद, बहुत प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया,
Deleteआभार।
आँखों ने राज खोल दिए - जो जुबां ने छुपा लिए -
ReplyDeleteबहुत थामे दर्द जिगर ने - आँखों ने छलका दिए --
आदरनीय पम्मी जी आँखों की खामोश जुबान कभी झूठ नहीं बोलती | उस ख़ामोशी को सुंदर शब्द दिए आपने -------- रचना के लिए सस्नेह बधाई ------
धन्यवाद रेणू जी, बहुत प्रोत्साहन देती आपकी प्रतिक्रिया। आभार।
Deleteखूब
Deleteखूब
Deleteआदरणीय आपकी एक -एक पंक्तियाँ लाज़वाब हैं बहुत सुन्दर
ReplyDeleteउम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ
Deleteआपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 22 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय..
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