पन्नों पे तख़य्युल के अक्सों को उकेर कर देखो ,
कमाल है, इन अल्फाज़ों में ,
जो कई ज़िंदगी के सार लिख जाते हैं..,
रह कर इन हदों में
लफ्ज़ दिखा जाते .. कई सिल - सिले,
रखती हूँ,
अल्फाजों में खुद का इक हिस्सा
तो निखर जाती है ख्यालों की ताबीर..,
तफसील है ये लफ्ज़, अख्यात जज्बातों का
शउर वाले जबान रख कर सफ्हों पर बिखर जाती..
अल्फाज़ है तर्जुमानी की,
सो स्याही के सुर्खे-रंग को हिना कर देखों..
लहजे तो इनके असर होने में हैं,
हमनें तो बस आज लिखा है..
इन सफ़हे-आइना पर,
क़मर आब की जिक्र कर
तुम अपना कल लिख देना
.. © पम्मी सिंह
तख़य्युल- कल्पना, तफसील -विस्तृत, क़मर-चांद
तख़य्युल- कल्पना, तफसील -विस्तृत, क़मर-चांद
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।
Deleteलफ्ज़ दिखा जाते .. कई सिल - सिले,....
ReplyDelete....तख्खयुल का तफसील तराना!
हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।
Deleteशुभ प्रभात..
ReplyDeleteएक बेइन्तहां खूबसूरत नज़्म
सादर
कमाल की लेखनी बेहद खूबसूरत अंदाज। जैसे लिखने वाले ने अपना प्यारा सा हृदय उकेड़ कर सामने रख दिया है।
ReplyDeleteआदरणीय पम्मी जी अनंत बधाई।।।।।।
हार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।
Deleteवाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।
Deleteप्यारी नज़्म
ReplyDeleteमन को भा गई
जी,शुक्रिया..।
Deleteआदरणीया पम्मी जी आपकी नज़्म एक पहेली-सी सुलझती लगती है।
ReplyDeleteआपने इतने नाज़ुक जज़्बात उड़ेले हैं कि दिल शिद्दत से महसूस करता है और सुकूं के लिए फिर पढ़ता है एक तसव्वुर को।
बेहद संजीदा प्रस्तुति।
आपको बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बेहद खूबसूरत शब्दों से सजी गहरे भाव लिए आपकी रचना पम्मी जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिये।
Deleteबहुत ही शानदार और खूबसूरत रचना की प्रस्तुति। बेहद पसंद आई। इसके भाव बहुत ही सुंदर हैं।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteबहुत ही हृदय स्पर्शी रचना...
ReplyDeleteसुन्दर ,सार्थक प्रस्तुति...
लाजवाब..
प्रोत्साहन देती आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखूबसूरत शब्द बेहद खूबसूरत अंदाज
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
रखती हूँ,
ReplyDeleteअल्फाजों में खुद का इक हिस्सा
तो निखर जाती है ख्यालों की ताबीर..,
आत्मबैरागी मन का सुंदर संवाद -- सुकुनेदिल के लिए लफ्जों में खुद को उतारना ही सबसे बड़ी ईमानदारी है | कोमल शब्दावली से सजी रचना --प्रिय पम्मी जी |