Jun 26, 2019

इंसानियत मादूम हुए..








बिहार (मुज्जफरपुर) की घटनाओं पर चंद असरार..



इंसानियत मादूम हुए,आँखों में बाजार समाएं बैठे हैं
देखे थे जो सब्ज़-ए-चमन,वो ख्वाबोंं में समाएं बैठे हैं



किस तरह भूलेंं वो बस्ती ओ बच्चों की ठहरीनिगाहें
ये दर्द गहरा,जख़्म ताजा पर बजारों के शोर उठाएं बैठे हैंं



मुंसिफ, वज़ीर ,रहबरी लफ्जों को पैकर में ढाल रहे
आँगन की किलकारियां,खामोश हो मिट्टी में दबाएं बैठे हैंं



आलस के ताल पर सारी राजनीति व्यथा कराह रहे
कतरा -कतरा पिघल रहा आप मूँह में दही जमाएं बैठे हैंं



लाव-लश्कर की रैली सुनी-सुनी आँखों में खटकती है  
हकीकत की अब फ़सल उगाओ क्यूँ वक्त गवाएं बैठे हैंं।
                                    पम्मी सिंह'तृप्ति'...✍



पैकरः आकृति, figure, मादूम ःलुप्त

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...