Aug 21, 2017

तुम चुप थी उस दिन....




तुम चुप थीं उस दिन..


पर वो आँखों में क्या था...?



जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की,


तमाम गुजरे, पलों के फ़साने दफ़्न कर.. 



लफ्ज़ों  ने उन लम्हों से शिकायत की.


जिंदगी की राहों से जो गुज़री हो 


जो ज़मीन न तलाश कर सकी ,


मसाइलों की क्या बात करें...


ये उम्र के हर दौर से गुज़रती है.



अजीब कश्मकश थी...


हर यादों और बातों से निकल कर भी


अतीत के मंज़र को ढूँढती थी वो आँखें..


पम्मी सिंह

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...