कई दिनों बाद ...थोड़ी सी सुकून और कलम...गानें के साथ
हालत ये मेरे मन की, जाने ना जाने कोई
आई हैं आते आते होठों पे दिल की बातें..
क्योंकि यहाँ जिंदगी इतनी ख़फा नहीं, आकाश सी बदलती रंग है पेश है चंद मुक्तक..जिसे १२२२, १२२२,१२२२,१२२२ बहर पर ..समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का स्वागत है✍️
१.
जमानें हार कर हमनें अब जाना,ये इशारे है
यहीं पर चाँद है मेरा, यहीं पर हीं सितारे हैं
खुले दर ही सही पर फासलें यूँ ही नहीं रहतेंमहज़ दि'लों की इबादत से कई दीवारें हारे हैं।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
२.
कि तेरा साथ मिल जाए सफर सामान हो जाए
दिल से दिल की तआरुफ़ बस आसान हो जाए
अजब सी दिल्लगी जूनून तारी रहा मुझ पर
दिलों के दरमियाँ ये फासलें अनजान हो जाए।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
३.
मुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
बचीं अब भी वहीं दीवानगी जो रौनकें देती-
सहर को शाम जो समझें कि वो मंतर नहीं हूँ मैं।
ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
बचीं अब भी वहीं दीवानगी जो रौनकें देती-
सहर को शाम जो समझें कि वो मंतर नहीं हूँ मैं।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
अच्छा लगा
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteबहुत खूबसूरत मुक्तक । बेहतरीन सृजन ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपकी शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों को देख कर।
Deleteधन्यवाद
बहुत सुंदर मुक्तक, सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteहर्षित हूँ, शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों को देख कर।
Deleteधन्यवाद
अरे वाह दी बहर वाली मुक्तक👌
ReplyDeleteबेहद लाज़वाब लिखा है आपने
३.
मुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
बचीं अब भी वहीं दीवानगी जो रौनकें देती-
सहर को शाम जो समझें कि वो मंतर नहीं हूँ मैं
बहुत सुंदर👌👌
सस्नेह
सादर
समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।
Deleteजमानें हार कर हमनें अब जाना,ये इशारे है
ReplyDeleteयहीं पर चाँद है मेरा, यहीं पर हीं सितारे हैं
खुले दर ही सही पर फासलें यूँ ही नहीं रहतें
महज़ दि'लों की इबादत से कई दीवार हारे हैं।
लाजवाब मुक्तक मापनी पर आधारित
वाह!!!!
बहुत अच्छा लगा आपकी शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों को देख कर।
Deleteधन्यवाद
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी,आभार।
Deleteवाह बहुत सुन्दर'सहर को शाम जो समझे....'क्या बात है।
ReplyDeleteजी,शुक्रिया।
Deleteक्या बात है, अति सुंदर
ReplyDeleteआभार।
Deleteशानदार अश़आर..
ReplyDeleteमुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
सादर..
आपकी सराहनीय शब्दों से लेखन को बल मिला। सादर
Deleteबेहद खूबसूरत मुक्तक आदरणीया
ReplyDeleteशुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteवाह 👌👌👌👌क्या बात!!!
ReplyDeleteबेहतरीन रुबाइयाँ । शायद उर्दू में रुबाइयाँ ही कहा जाता है ।
वक़्त के साथ सब बदलता रहता ।
जी,आपकी सराहनीय शब्दों से लेखन को पंख मिला। सादर
Deleteकितेरा साथ मिल जाए सफर सामान हो जाए
ReplyDeleteदिल से दिल की तआरुफ़ बस आसान हो जाए///
सुव्यवस्थित मुक्तक प्रिय पम्मी जी! मन के प्रेमिल भाव भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी हैं। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🙏❤️❤️🌷🎈🌷
आपकी टिप्पणी बहुत खास होती है आदरणीया, प्रोत्साहित करती शब्दावली और भी खास बना गयीं।
Deleteहृदयतल से धन्यवाद।
जी,शुक्रिया।
ReplyDeleteकल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।
ReplyDeleteआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
आभार।
ReplyDeleteसभी कुल्तक बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteअंतिम वाला तो बेहद खूबसूरत है ... लाजवाब ...
शुभेच्छा पूर्ण प्रतिक्रिया हेतु आभार।
ReplyDeleteसुन्दर भाव...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर सुकोमल प्रेमभावना से परिपूर्ण मुक्तक हृदयस्पर्शी और अत्यधिक प्रभावशाली हैँ। आपको ढेरों शुभकामनायें और सादर बधाइयाँ।
ReplyDeleteशुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।
Deleteआभार
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