Jul 5, 2021

यहाँ जिंदगी इतनी ख़फा नहीं..

 

कई दिनों बाद ...थोड़ी सी सुकून और कलम...गानें के साथ 


हालत ये मेरे मन की, जाने ना जाने कोई
आई हैं आते आते होठों पे दिल की बातें..

क्योंकि यहाँ जिंदगी इतनी ख़फा नहीं, आकाश सी बदलती रंग है पेश है चंद मुक्तक..जिसे १२२२, १२२२,१२२२,१२२२ बहर पर ..समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का स्वागत है✍️

१.

जमानें हार कर हमनें अब जाना,ये इशारे है

यहीं पर चाँद है मेरा, यहीं पर हीं सितारे हैं

खुले दर ही सही पर फासलें यूँ ही नहीं रहतें

महज़ दि'लों की इबादत से कई दीवारें हारे हैं।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
२.
कि तेरा साथ मिल जाए सफर सामान हो जाए

दिल से दिल की तआरुफ़ बस आसान हो जाए

अजब सी दिल्लगी जूनून तारी रहा मुझ पर

दिलों के दरमियाँ ये फासलें अनजान हो जाए।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
३.
मुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
बचीं अब भी वहीं दीवानगी जो रौनकें देती-
सहर को शाम जो समझें कि वो मंतर नहीं हूँ मैं।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


34 comments:

  1. बहुत खूबसूरत मुक्तक । बेहतरीन सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत अच्छा लगा आपकी शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों को देख कर।
      धन्यवाद

      Delete
  2. बहुत सुंदर मुक्तक, सराहनीय सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हर्षित हूँ, शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों को देख कर।
      धन्यवाद

      Delete
  3. अरे वाह दी बहर वाली मुक्तक👌
    बेहद लाज़वाब लिखा है आपने

    ३.
    मुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
    ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
    बचीं अब भी वहीं दीवानगी जो रौनकें देती-
    सहर को शाम जो समझें कि वो मंतर नहीं हूँ मैं
    बहुत सुंदर👌👌

    सस्नेह
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।

      Delete
  4. जमानें हार कर हमनें अब जाना,ये इशारे है
    यहीं पर चाँद है मेरा, यहीं पर हीं सितारे हैं
    खुले दर ही सही पर फासलें यूँ ही नहीं रहतें
    महज़ दि'लों की इबादत से कई दीवार हारे हैं।

    लाजवाब मुक्तक मापनी पर आधारित
    वाह!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत अच्छा लगा आपकी शुभेच्छा संपन्न टिप्पणियों को देख कर।
      धन्यवाद

      Delete
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


    ReplyDelete
  6. वाह बहुत सुन्दर'सहर को शाम जो समझे....'क्या बात है।




    ReplyDelete
  7. शानदार अश़आर..
    मुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
    ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
    सादर..

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सराहनीय शब्दों से लेखन को बल मिला। सादर

      Delete
  8. बेहद खूबसूरत मुक्तक आदरणीया

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

      Delete
  9. वाह 👌👌👌👌क्या बात!!!
    बेहतरीन रुबाइयाँ । शायद उर्दू में रुबाइयाँ ही कहा जाता है ।

    वक़्त के साथ सब बदलता रहता ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी,आपकी सराहनीय शब्दों से लेखन को पंख मिला। सादर

      Delete
  10. कितेरा साथ मिल जाए सफर सामान हो जाए
    दिल से दिल की तआरुफ़ बस आसान हो जाए///
    सुव्यवस्थित मुक्तक प्रिय पम्मी जी! मन के प्रेमिल भाव भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी हैं। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🙏❤️❤️🌷🎈🌷

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी टिप्पणी बहुत खास होती है आदरणीया, प्रोत्साहित करती शब्दावली और भी खास बना गयीं।
      हृदयतल से धन्यवाद।

      Delete
  11. जी,शुक्रिया।

    ReplyDelete
  12. कल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।

    आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    ReplyDelete
  13. सभी कुल्तक बहुत सुन्दर ...
    अंतिम वाला तो बेहद खूबसूरत है ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
  14. शुभेच्छा पूर्ण प्रतिक्रिया हेतु आभार।

    ReplyDelete
  15. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

      Delete
  16. सुन्दर सुकोमल प्रेमभावना से परिपूर्ण मुक्तक हृदयस्पर्शी और अत्यधिक प्रभावशाली हैँ। आपको ढेरों शुभकामनायें और सादर बधाइयाँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद।

      Delete

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...