May 17, 2016

प्रयास जारी रहती..

इत्ती  सी  ज़िंदगी ,, इत्ता  सारा  काम. . 
अब  बोलो  कैसे  करु 
हाँ , जी  बस  करना  जरूर  हैं। 
ओ>> जिसे  छुट्टियाँ  कहते हैं  आई थी  चली  भी  गयी...
भाई, हद  हो  गई   
हर  दिन  की  इक  कहानी.. 
सब  की  छुट्टियों  में  अपना  हिस्सा   तलाश  रही  थी। 
(वो  सुबह  कभी  तो आएगी . . )
हर  रिश्तों  को  आती -जाती  सांसो  मे  उतार  कर  सुखद  अहसास  देने 
की  प्रयास  ज़ारी  रहती हैं। 
फिर  भी  कभी  ये  छूटा  तो  कभी  ओ  छूटा . . 
धत ! तेरी  की . परेशानी  की  क़्या  बात ? 
हर  लकीरो  में  मोड़ आ   ही  जाती  हैं। 
सच  हैं .
ठहरे  हुए  पानी  में  घोर  सन्नाटा .  . 

तन्कन्त  तो  इस  बात  की 
मैने  सारी  उम्र  बिना  छुट्टियों   की  बहुत  काम  की 
तभी   एक  आवाज़ 
तूने   किया  क़्या  ?
चार  रोटियाँ   हि  तो  बनाई 
स्थिति  जल  बिन  मछली  की  तरह ...

शायद  इस  लिए  बैठे -बैठे  एक   कंकर   डाल  दी . . परत  दर  परत  लहरों  की  तरह 
मन  मे  विचार  भी  आ  कर  जाती  रही। 
जा  रही  हुँ.. शाम  होने  को आई .. 
खुद  के  हिस्से   की  उम्र को   जी  रही  हूँ 
कल  तो  छुट्टी  होगी  हि.. 
(इत्ती  सी  हसी ,इत्ती  सी  ख़ुशी, इत्ता  सा  आसमान 
हुह .. तो  फिर  इत्ती  सी  परेशानियाँ .  . )


आज बिना लाग  लपेट के सुलभ भाव की प्रस्तुति।  

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...