इत्ती सी ज़िंदगी ,, इत्ता सारा काम. .
अब बोलो कैसे करु
हाँ , जी बस करना जरूर हैं।
ओ>> जिसे छुट्टियाँ कहते हैं आई थी चली भी गयी...
भाई, हद हो गई
हर दिन की इक कहानी..
सब की छुट्टियों में अपना हिस्सा तलाश रही थी।
(वो सुबह कभी तो आएगी . . )
हर रिश्तों को आती -जाती सांसो मे उतार कर सुखद अहसास देने
की प्रयास ज़ारी रहती हैं।
फिर भी कभी ये छूटा तो कभी ओ छूटा . .
धत ! तेरी की . परेशानी की क़्या बात ?
हर लकीरो में मोड़ आ ही जाती हैं।
सच हैं .
ठहरे हुए पानी में घोर सन्नाटा . .
तन्कन्त तो इस बात की
मैने सारी उम्र बिना छुट्टियों की बहुत काम की
तभी एक आवाज़
तूने किया क़्या ?
चार रोटियाँ हि तो बनाई
स्थिति जल बिन मछली की तरह ...
शायद इस लिए बैठे -बैठे एक कंकर डाल दी . . परत दर परत लहरों की तरह
मन मे विचार भी आ कर जाती रही।
जा रही हुँ.. शाम होने को आई ..
खुद के हिस्से की उम्र को जी रही हूँ
कल तो छुट्टी होगी हि..
(इत्ती सी हसी ,इत्ती सी ख़ुशी, इत्ता सा आसमान
हुह .. तो फिर इत्ती सी परेशानियाँ . . )
आज बिना लाग लपेट के सुलभ भाव की प्रस्तुति।
अब बोलो कैसे करु
हाँ , जी बस करना जरूर हैं।
ओ>> जिसे छुट्टियाँ कहते हैं आई थी चली भी गयी...
भाई, हद हो गई
हर दिन की इक कहानी..
सब की छुट्टियों में अपना हिस्सा तलाश रही थी।
(वो सुबह कभी तो आएगी . . )
हर रिश्तों को आती -जाती सांसो मे उतार कर सुखद अहसास देने
की प्रयास ज़ारी रहती हैं।
फिर भी कभी ये छूटा तो कभी ओ छूटा . .
धत ! तेरी की . परेशानी की क़्या बात ?
हर लकीरो में मोड़ आ ही जाती हैं।
सच हैं .
ठहरे हुए पानी में घोर सन्नाटा . .
तन्कन्त तो इस बात की
मैने सारी उम्र बिना छुट्टियों की बहुत काम की
तभी एक आवाज़
तूने किया क़्या ?
चार रोटियाँ हि तो बनाई
स्थिति जल बिन मछली की तरह ...
शायद इस लिए बैठे -बैठे एक कंकर डाल दी . . परत दर परत लहरों की तरह
मन मे विचार भी आ कर जाती रही।
जा रही हुँ.. शाम होने को आई ..
खुद के हिस्से की उम्र को जी रही हूँ
कल तो छुट्टी होगी हि..
(इत्ती सी हसी ,इत्ती सी ख़ुशी, इत्ता सा आसमान
हुह .. तो फिर इत्ती सी परेशानियाँ . . )
आज बिना लाग लपेट के सुलभ भाव की प्रस्तुति।
Bilkul sahi ji ye dailogue har stri ko sunana padta hai kiya kya chaar rotiya hi to banayi hai .. in sabko adjust krte huye chalna hi nari ki niyti or karaykushalta hai ☺ gm jsk
ReplyDeleteBilkul sahi..
DeleteDhanywad.
सार्थक
ReplyDeleteDhanywad..
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-05-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2347 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
Aabhar..
Deletesamil karney hetu dhanywad..
बढ़िया
ReplyDeleteDhanywad..
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteJi,dhanywad.
Deleteखुद के हिस्से की उम्र को जी रही हुँ
ReplyDeleteकल तो छुट्टी होगी हि..
...लाज़वाब...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
Pratikriya hetu dhanyawad,sir.
Deleteमन की भावनाओं को सैलाब सा उतार दिया है आपने ... बहुत खूब ...
ReplyDeletePratikriya hetu aabhar,sir.
Delete''इत्ती सी जिंदगी.., इत्ते सारे काम..! देख बेचारा जमशेद.. हो गया हैरान औ परेशान..! पम्मी जी, मुझे आपकी रचना इतनी पसंद आई कि मैं खुद थोड़ा बहुत कवि बन गया। यूं ही लिखते रहिए।
ReplyDeleteJi,dhanyead.
DeleteBehad khubsurat abhivyaakti..
ReplyDeleteJi, dhanywad
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजी,धन्यवाद.
ReplyDeleteaase achi post lekene ke leye danawyad by http://www.99hindi.in/ team..
ReplyDeleteJi, dhanywad :)
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