लोगो ने ये कौन सी
ऱीवाज पाल रखी
जहाँ खुद की
पाकीजगी साबित
करने की चाह में
दुसरो को गिराना
पडा,
मसाइबो की क्या कमी
खुद की रयाजत और
उसके समर की है आस..
रफाकते भी चंद दिनो
की
पर मुजमहिल इस कदर
कि
मैं ही मैं हूँ।
न जाने
वो इख्लास की
छवि गई कहाँ
जहाँ अजीजो की
भी थी हदें
खुदी की जरकाऱ
साबित करने की चाह
में
लोगो ने ये कौन सी
रीवाज पाल रखी है
इक हकीकत ऐसी
जिससे नजरे भी
बचती और बचाती
है...।
©..पम्मी
अति सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार..
ReplyDeleteBahut khoob ...
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार,सर
ReplyDeleteएक अच्छी रचना। सच है अपनी पवित्रता दिखाने के लिए औरों को बुरा बताना आज कल रिवाज हो गया है। मुझे अच्छी लगी रचना।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद.
Deleteबहुत ही सुंदर रचना। सच में हम सभी ने ही कुछ घातक रिवाज पाल रखे हैं। बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद.
Deleteअच्छी रचना ।
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों को सजाकर बनायीं गयी एक बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteJi, dhanywad.
ReplyDeleteआज का कटु सत्य...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार, सर
ReplyDeleteशुक्रिया,
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद।