Mar 31, 2016

फर्ज और कर्ज किसी ओर..

मुड़  कर जाती  ज़ीस्त 
गुज़रते  लम्हों  को 
शाइस्तगी  से ताकीद   की
फ़र्ज़  और क़र्ज़ 
 किसी  ओर  रोज़,
खोने  और  पाने  का 
हिसाब  किसी  ओर  दिन
मुद्द्त्तो  के  बाद  मिली 
पलक्षिण  को  समेट  तो  लू,
शाद  ने  भी 
शाइस्तगी  से ताकीद  की,
हम  न  आएगे  बार - बार.. 
पर  हर इक  की
 हसरते जरूर  हूँ
मसरूफ   हू   पर 
 हर इक  के  नसीब में  हूँ,
मैं  भी  इक  गुज़रती 
ज़ीस्त  का  लम्हा हूँ  .. 
                                   ©पम्मी 
                                                                                   
 शाइस्तगी -सभ्य ,नम्र decent
शाद -ख़ुशी happiness


11 comments:

  1. खूबसूरतीसे आपने शाद, शाइस्तगी का इस्तमाल किया है। लेखनी अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  2. जी,बहुत बहुत धन्यवाद.
    आभार

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  3. आपकी कलम से निकले अल्फाज मुझे काफी अच्छे लगे।

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  4. जी,बहुत-बहुत धन्यवाद..

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  5. बहुत ही सुंदर रचना। पम्मी जी, अापकी शुरूआत बहुत अच्छी है। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करती रहें। मैं अपने ब्लाग पर ब्लागिंग से संबंधित जानकारी नई कैटेगरी के माध्यम से दे रहा हूं। उन्हें भी ध्यान पढ़ें। हम सभी को ब्लागिंग को अपनी मंजिल तक हर हाल में पहुंचाना है। मेरा अनुभव यह है कि यह काम असंभव नहीं है। इसमें आपार संभावनाएं हैं।

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  6. मार्गदर्शन एवम् प्रतिक्रिया हेतू धन्यवाद, सर.

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  7. अपने ब्लागों में फालोवर्स गैजेट जोड़े ताकि छपने की खबर पाठकों तक पहुँचती रहे ।

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  8. अपने ब्लागों में फालोवर्स गैजेट जोड़े ताकि छपने की खबर पाठकों तक पहुँचती रहे ।

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  9. बहुत अच्छी रचना

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