Mar 7, 2016

ये मेआर...

ये मेआर...

बेटियो से
मधु मिश्रित ध्वनि से पुछा

कहाँ से लाती हो, 
ये मेआर
नाशातो की सहर            
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,
जी..
मैने हँस कर कहाँ
मेरी माँ ने संवारा..
उसी ने बनाया है
स्वयं को कस कर
हर पलक्षिण में

इक नई कलेवर के लिए

शनैः शनैः पोशाक बदल कर

औरो को नहीं
बस..
खुदी को सवांरा...
इल्म इस बात की
कमर्जफ हम नहीं

हमी से जमाना है...
                © पम्मी 

9 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2277 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. मेरी माँ ने संवारा..
    उसी ने बनाया है
    स्वयं को कस कर
    हर पलक्षिण में

    इक नई कलेवर के लिए
    शनैः शनैः पोशाक बदल कर

    :) sundar abhivyakti ..jsk

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  3. वाह..वाह..., क्या खूब लिखा है। ''मैने हँस कर कहाँ
    मेरी माँ ने संवारा..
    उसी ने बनाया है
    स्वयं को कस कर
    हर पलक्षिण में'' सुंदर शब्दों और भावों से सजी हुई रचना।

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  4. वाह..वाह..., क्या खूब लिखा है। ''मैने हँस कर कहाँ
    मेरी माँ ने संवारा..
    उसी ने बनाया है
    स्वयं को कस कर
    हर पलक्षिण में'' सुंदर शब्दों और भावों से सजी हुई रचना।

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  5. बहोत अच्छे !by "feelmywords1.blogspot.com"

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