Mar 31, 2016

फर्ज और कर्ज किसी ओर..

मुड़  कर जाती  ज़ीस्त 
गुज़रते  लम्हों  को 
शाइस्तगी  से ताकीद   की
फ़र्ज़  और क़र्ज़ 
 किसी  ओर  रोज़,
खोने  और  पाने  का 
हिसाब  किसी  ओर  दिन
मुद्द्त्तो  के  बाद  मिली 
पलक्षिण  को  समेट  तो  लू,
शाद  ने  भी 
शाइस्तगी  से ताकीद  की,
हम  न  आएगे  बार - बार.. 
पर  हर इक  की
 हसरते जरूर  हूँ
मसरूफ   हू   पर 
 हर इक  के  नसीब में  हूँ,
मैं  भी  इक  गुज़रती 
ज़ीस्त  का  लम्हा हूँ  .. 
                                   ©पम्मी 
                                                                                   
 शाइस्तगी -सभ्य ,नम्र decent
शाद -ख़ुशी happiness


Mar 22, 2016

Noor e rang...

नूर-ए-रंग है फाग की

हमें खिलने के लिए,

चंद रस्म नहीं सिर्फ

निभाने के लिए,

निखर कर निखार दे

पूर्ण चांद निकला है

ये बताने के लिए..
-    ©पम्मी      

              

Mar 7, 2016

ये मेआर...

ये मेआर...

बेटियो से
मधु मिश्रित ध्वनि से पुछा

कहाँ से लाती हो, 
ये मेआर
नाशातो की सहर            
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,
जी..
मैने हँस कर कहाँ
मेरी माँ ने संवारा..
उसी ने बनाया है
स्वयं को कस कर
हर पलक्षिण में

इक नई कलेवर के लिए

शनैः शनैः पोशाक बदल कर

औरो को नहीं
बस..
खुदी को सवांरा...
इल्म इस बात की
कमर्जफ हम नहीं

हमी से जमाना है...
                © पम्मी 

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...