मुड़ कर जाती
ज़ीस्त
गुज़रते लम्हों को
शाइस्तगी से ताकीद की,
फ़र्ज़ और क़र्ज़
किसी
ओर रोज़,
खोने और पाने का
हिसाब किसी ओर दिन,
मुद्द्त्तो के बाद मिली
पलक्षिण को समेट तो लू,
शाद ने भी
शाइस्तगी से ताकीद की,
हम न आएगे बार - बार..
पर हर इक की
हसरते
जरूर हूँ,
मसरूफ हू
पर
हर इक
के नसीब में हूँ,
मैं भी इक गुज़रती
ज़ीस्त का लम्हा हूँ ..
©पम्मी
शाइस्तगी
-सभ्य ,नम्र decent
शाद -ख़ुशी happiness