जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे
पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे,
मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर
अनकहे का रिवाज है पर कहे को निभाए जा रहे।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय) ( article on women...
ज़िन्दगी यही है ... कुछ और कर भी नहीं सकते पढने के सिवा...
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