सृष्टि चिर निरुपम
अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण
आत्मा का न संस्करण
किंजल्क स्वर्ण सरजीत
समस्त भाव
दिव्यपुंज दिव्यपान
प्रज्ञा का भाव
जागृत सुप्तवस्था
निर्गुण निर्मूल
अविवेका,
निः सृत वाणी
अस्तु आरम्भ
सदा निर्विकारी
कर्म अराधना
विकर्म विवेकशून्य
निष्काम कर्मयोग अनुशीलन
संघर्षरत वृत्ति
यदा कदा प्राप्तव्य
अज्ञान निवृत्ति
यजन प्रवृत्ति
संसृति संकल्प
श्रेय और प्रेय विकल्प
व्यष्टिक चेतना अल्प
जटिल सार्विक क्रियाकलाप
स्वार्थ सर्वव्यापी
संकल्पता,साकारात्मक
यथार्थ जीवन का
प्रतिपादित कर्म
©पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍
बहुत सुंदर रचना 👌
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
Deleteआत्मा सदा निरुपम
ReplyDeleteकर्म पुद्गगल आच्छादितम
सृष्टि सदा भ्रान्ति
सूक्ष्म अन्वेषणा सिद्धम ।
पम्मी जी विलक्षण लक्षणों से युक्त रचना ।
अप्रतिम अद्भुत ।
लेखनी से निकली सुंदर शब्द सरिता के लिए आपको धन्यवाद
Deleteबेहतरीन..
ReplyDeleteसादर
आभार
Deleteबहुत उम्दा रचना के लिए बधाई - पंकज त्रिवेदी
ReplyDeleteजी,आभार।
Deleteसृष्टि चिर निरुपम
ReplyDeleteअंतर्मन सा अनमोल भ्रमण ,बेहतरीन.......
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आप ने 🙏🙏🙏
जी,शुक्रिया।
Deleteउत्कृष्ट लेखनी का आभा मंडल कमाल कर रहा है ...
ReplyDeleteसुंदर रचना है ...
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद
Deleteतत्सम शब्द-विन्यास और लाक्षणिकता ने रचना का कलापक्ष उत्कृष्टता की ओर अग्रसर किया है किन्तु भावपक्ष गूढ़ता की राह पकड़कर पाठक को रचना का मर्म आत्मसात करने से भटका रहा है.
ReplyDeleteबेहतर होगा आप अपनी रचनाओं में भाव-विचार के प्रवाह और सीधे सम्वाद की शैली को भी तरज़ीह देने पर विचार करें.
ऐसी रचनाओं को साहित्य की धरोहर होने का तमग़ा तो मिल जाता है और वे सीमित दायरे में सिमट जाती हैं, साथ ही बेहतर होगा कि वे सामान्य पाठक को संदेश देने की संप्रेषणीयता के मानदंड पर भी खरी उतरें.....यह मेरी सलाह है.
बधाई एवं शुभकामनायें.
आभार रवीन्द्र जी..विश्लेषणात्मक अध्ययन एवम् सुझावों के लिए. बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteगूढ़ शब्दों,सूक्ष्म भावों से सजी में रची गयी रचना अंतस की "तृप्ति"का प्रयास कर रही है।
ReplyDeleteगूढ़ तत्सम शब्दों के लाक्षणिक प्रयोग रचना को विशिष्टता प्रदान कर रही है।
उर्दू की प्रायोगिक कवियित्री को हिंदी की ऐसी कृतित्व के लिए बधाई।
थोड़ा प्रयास कर ली.शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार।
Deleteवाह!!लाजवाब!!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteब्लॉग पर स्वागत है
सदा निर्विकारी.....निष्काम कर्मयोग...संघर्षरत वृति...स्वार्थ सर्वव्यापी...!!!
ReplyDelete'तृप्ति' का अतृप्त उच्छवास, तृप्ति की तलाश में!
आभार 'तृप्ति'का!
लेखनी से निकली सुंदर शब्द सरिता के लिए आपको धन्यवाद
Deleteवाह
ReplyDeleteजी,आभार
Deleteक्या बात हैं।
ReplyDeleteकविता तो श्रेष्ठतम शिखर पर ले गयी आप अपनी creativity से।
बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteवाह , बहुत सुंदर रचना पम्मी जी ... बधाई
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