Showing posts with label तृप्ति. Show all posts
Showing posts with label तृप्ति. Show all posts

Oct 6, 2021

रस्मों में यूँ रुस्वा न करों मुझको..

 


इक साज हमारा है इक साज तुम्हारा है
लफ्जों संग वो साहब- नाज़ तुम्हारा है,


इल्जाम लगाकर यूँ जख्मों को सजाए क्यूँ
चलों धूप हमारी है, सरताज तुम्हारा है,


अब कौन यहाँ जज़्बातों की फ़िक्र करता है
हर बार कसम दे अपनी, मि'जाज तुम्हारा है,


रस्मों में  यूँ रुस्वा न करों मुझको
फूलों से' भरा आँगन, औ ताज तुम्हारा है,

ये वक्त नुमायाँ है या शामिल तकदीरें
अब कैद रिहाई की रस्में',
अंदाज तुम्हारा है...#तृप्ति
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



साहब नाज.. companion of grace.
➖➖➖




Jul 31, 2021

खग वृंद



 Batch of 2020- 2021 online batch really deserve it. In a short sentence ," New ways of thinking and to cope with different situation "

पीछे मुड़कर देखतीं हूँ तो कल की ही बात लगती है.. स्कूटी से लाते वक्त पीछे मूँह कर बैठ जाना, कभी हिलडुल करना, हेलमेट न पहनने की जीद्द करना और मेरा सख्ती कर बोलना हमलोग यहीं बैठ जाते हैं, फिर ड्राइविंग सीट पर बैठतें ही अपने से पहले मुझे सीट बेल्ट लगाने के लिए बोलना... लगता है सब बहुत जल्दी बित गया, पर समय की तो अपनी ही चाल है .

इसी बात पर जाते - जाते शगुन के साथ,उसके सभी सहपाठियों के लिये..✍️


हर नई सोच का मज़मून बना लेना

फ़लक को छूकर जमीं से निभा लेना,


गूजरें चौदह साल खूबान -ए -जहाँ  में

फ़त्ह के अंदाज में भी आलिमों से दुआ लेना


बनाकर हौसले तुम उँची उड़ानों की

दामन के काँटों को थोड़ा सजा लेना,


 ठोकरें भी आती हैं कदमताल से ही

 जमाने के निगाह से हौसले बचा लेना,


 सुब्ह बिखरी हुई 'शगु','शुभ' के राहों में

 'तृप्ति'अपनी गौहरों को सीप में छुपा लेना।

 पम्मी सिंह 'तृप्ति'

बहुत - बहुत शुक्रिया।

सादर...✍️


(ख़ूबान ए जहाँ-best of the world,मज़मून- subjectफ़लक-sky, आलिमों- scholarly 'here use for teacher' गौहरों-pearls,)

Aug 20, 2018

सृष्टि चिर निरुपम...




सृष्टि चिर निरुपम
अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण 
आत्मा का न संस्करण 

किंजल्क  स्वर्ण सरजीत
समस्त भाव
दिव्यपुंज दिव्यपान
प्रज्ञा का भाव

जागृत सुप्तवस्था
निर्गुण निर्मूल
अविवेका,

निः सृत वाणी
अस्तु आरम्भ
सदा निर्विकारी

कर्म अराधना
विकर्म विवेकशून्य
निष्काम कर्मयोग अनुशीलन

संघर्षरत वृत्ति
यदा कदा प्राप्तव्य
अज्ञान निवृत्ति 
यजन प्रवृत्ति

संसृति संकल्प
श्रेय और प्रेय विकल्प
व्यष्टिक चेतना अल्प
जटिल सार्विक क्रियाकलाप

स्वार्थ सर्वव्यापी
संकल्पता,साकारात्मक
यथार्थ जीवन का
प्रतिपादित कर्म

                                     ©पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍






कैसी अहमक़ हूँ

  कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...