Oct 6, 2021

रस्मों में यूँ रुस्वा न करों मुझको..

 


इक साज हमारा है इक साज तुम्हारा है
लफ्जों संग वो साहब- नाज़ तुम्हारा है,


इल्जाम लगाकर यूँ जख्मों को सजाए क्यूँ
चलों धूप हमारी है, सरताज तुम्हारा है,


अब कौन यहाँ जज़्बातों की फ़िक्र करता है
हर बार कसम दे अपनी, मि'जाज तुम्हारा है,


रस्मों में  यूँ रुस्वा न करों मुझको
फूलों से' भरा आँगन, औ ताज तुम्हारा है,

ये वक्त नुमायाँ है या शामिल तकदीरें
अब कैद रिहाई की रस्में',
अंदाज तुम्हारा है...#तृप्ति
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



साहब नाज.. companion of grace.
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25 comments:

  1. सुंदर, सार्थक रचना !........
    ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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    1. तहेदिल से शुक्रिया।

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  2. बहुत सुन्दर सृजन

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    1. तहेदिल से शुक्रिया।

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  3. अब कौन यहाँ जज़्बातों की फ़िक्र करता है
    हर बार कसम दे अपनी, मि'जाज तुम्हारा है,
    भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही प्यारी रचना आदरणीय दी

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    1. प्रोत्साहित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।

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  4. बहुत सुंदर! उम्दा सृजन पम्मी जी हर शेर गहन , बेहतरीन।

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  5. प्रोत्साहित करते टिप्पणियों के लिए आपका बहुत बहुत आभार

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  6. हर शेर में एक कथा और व्यथा साथ लिए गहन कोमल भावनाओं को अभिव्यक्त करती रचना प्रिय पम्मी जी। हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए 🙏🌷🌷❤️🌷

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रोत्साहित टिप्पणी हेतु आभार।

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रोत्साहित टिप्पणी हेतु आभार आ०।

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  8. हर शेर लाजवाब । नायाब गजल ।

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  9. शुभेच्छा सम्पन्न प्रोत्साहित टिप्पणी हेतु आभार आ०।

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  10. वाह.. लाज़वाब शेरों वाली ग़ज़ल। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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    1. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  11. शानदार।हार्दिक शुभकामनाएं

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  12. बहुत खूबसूरत शेरोन से सजी गजल ...
    प्रेम की खुशबू बिखेरती ...

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    1. शुभेच्छा संपन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  13. वाह!!!
    बहुत ही भावपूर्ण गजल...
    एक से बढ़कर एक शेर।

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