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Oct 6, 2021

रस्मों में यूँ रुस्वा न करों मुझको..

 


इक साज हमारा है इक साज तुम्हारा है
लफ्जों संग वो साहब- नाज़ तुम्हारा है,


इल्जाम लगाकर यूँ जख्मों को सजाए क्यूँ
चलों धूप हमारी है, सरताज तुम्हारा है,


अब कौन यहाँ जज़्बातों की फ़िक्र करता है
हर बार कसम दे अपनी, मि'जाज तुम्हारा है,


रस्मों में  यूँ रुस्वा न करों मुझको
फूलों से' भरा आँगन, औ ताज तुम्हारा है,

ये वक्त नुमायाँ है या शामिल तकदीरें
अब कैद रिहाई की रस्में',
अंदाज तुम्हारा है...#तृप्ति
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



साहब नाज.. companion of grace.
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अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...