Aug 20, 2018

सृष्टि चिर निरुपम...




सृष्टि चिर निरुपम
अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण 
आत्मा का न संस्करण 

किंजल्क  स्वर्ण सरजीत
समस्त भाव
दिव्यपुंज दिव्यपान
प्रज्ञा का भाव

जागृत सुप्तवस्था
निर्गुण निर्मूल
अविवेका,

निः सृत वाणी
अस्तु आरम्भ
सदा निर्विकारी

कर्म अराधना
विकर्म विवेकशून्य
निष्काम कर्मयोग अनुशीलन

संघर्षरत वृत्ति
यदा कदा प्राप्तव्य
अज्ञान निवृत्ति 
यजन प्रवृत्ति

संसृति संकल्प
श्रेय और प्रेय विकल्प
व्यष्टिक चेतना अल्प
जटिल सार्विक क्रियाकलाप

स्वार्थ सर्वव्यापी
संकल्पता,साकारात्मक
यथार्थ जीवन का
प्रतिपादित कर्म

                                     ©पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍






30 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना 👌

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  2. आत्मा सदा निरुपम
    कर्म पुद्गगल आच्छादितम
    सृष्टि सदा भ्रान्ति
    सूक्ष्म अन्वेषणा सिद्धम ।
    पम्मी जी विलक्षण लक्षणों से युक्त रचना ।
    अप्रतिम अद्भुत ।

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    1. लेखनी से निकली सुंदर शब्द सरिता के लिए आपको धन्यवाद

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  3. बेहतरीन..
    सादर

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  4. बहुत उम्दा रचना के लिए बधाई - पंकज त्रिवेदी

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  5. सृष्टि चिर निरुपम
    अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण ,बेहतरीन.......

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  6. किंजल्क स्वर्ण सरजीत
    समस्त भाव
    दिव्यपुंज दिव्यपान
    प्रज्ञा का भाव
    गुंजायमान,
    बहुत ख़ूब... उत्कृष्ट सृजन आदरणीया

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार

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  7. वाह 👌👌👌
    बहुत अच्छा लिखा आप ने 🙏🙏🙏

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  8. उत्कृष्ट लेखनी का आभा मंडल कमाल कर रहा है ...
    सुंदर रचना है ...

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद

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  9. तत्सम शब्द-विन्यास और लाक्षणिकता ने रचना का कलापक्ष उत्कृष्टता की ओर अग्रसर किया है किन्तु भावपक्ष गूढ़ता की राह पकड़कर पाठक को रचना का मर्म आत्मसात करने से भटका रहा है.
    बेहतर होगा आप अपनी रचनाओं में भाव-विचार के प्रवाह और सीधे सम्वाद की शैली को भी तरज़ीह देने पर विचार करें.
    ऐसी रचनाओं को साहित्य की धरोहर होने का तमग़ा तो मिल जाता है और वे सीमित दायरे में सिमट जाती हैं, साथ ही बेहतर होगा कि वे सामान्य पाठक को संदेश देने की संप्रेषणीयता के मानदंड पर भी खरी उतरें.....यह मेरी सलाह है.
    बधाई एवं शुभकामनायें.

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    1. आभार रवीन्द्र जी..विश्लेषणात्मक अध्ययन एवम् सुझावों के लिए. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  10. गूढ़ शब्दों,सूक्ष्म भावों से सजी में रची गयी रचना अंतस की "तृप्ति"का प्रयास कर रही है।
    गूढ़ तत्सम शब्दों के लाक्षणिक प्रयोग रचना को विशिष्टता प्रदान कर रही है।
    उर्दू की प्रायोगिक कवियित्री को हिंदी की ऐसी कृतित्व के लिए बधाई।

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    1. थोड़ा प्रयास कर ली.शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार।

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  11. Replies
    1. जी,धन्यवाद।
      ब्लॉग पर स्वागत है

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  12. सदा निर्विकारी.....निष्काम कर्मयोग...संघर्षरत वृति...स्वार्थ सर्वव्यापी...!!!
    'तृप्ति' का अतृप्त उच्छवास, तृप्ति की तलाश में!
    आभार 'तृप्ति'का!

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    1. लेखनी से निकली सुंदर शब्द सरिता के लिए आपको धन्यवाद

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  13. क्या बात हैं।
    कविता तो श्रेष्ठतम शिखर पर ले गयी आप अपनी creativity से।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  14. वाह , बहुत सुंदर रचना पम्मी जी ... बधाई

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