Jul 25, 2018

लाजिमी है सियासत ..





भीड़ तंत्र पर बात चली हैं,एक छत के आस में
बेरोजगार भटके युवकों की राह बदली हैं,

आह,वाह..अना,.अलम,आस्ताँ के खातिर
आजकल हुजूम के कारोबार की हवा खूब चली हैं,

दर -ओ-दम निकाल कर ,बे-हिसाब बातों पर
शानदार इबारतें में ,शान्ति की राह निकली हैं,

शहरों के तमाम लफ़्जी बयां के मंजर देख
आँखों पर कतरन बाँध, अब नई राह निकली है,

बिसात किसी और की ,शह ,मात के जद़ में
चंद लोगों को मोहरा बनाने की बात चली हैं,

कलम भी तेरी ,दवात भी तेरी,तजाहुल भी तेरी
अब हर बात पे सफ़हे भी लाल  हो चली हैं,

रंग बदला,मिजाज बदला और वो हुनर निखरा
जहाँ पत्थर-दिल इंसानों की फितरत खूब बदली हैं,

एक मुक्कमल सहर के खातिर,हवाओं के रूख भाप
आदम की किस्मत को फ़र्क करने की तस्बीह खूब चली हैं,

लाजिमी हैं सियासत हैं ..और
सियासत में, सवाल,बवाल,मलाल की ही चली हैं,

पर जब बात यूँ निकली तो सवाल हैं ..
इबादत न सही पर क्या?
कभी दिलों के मौसम बदलने वाली बात चली हैं. ..

                                  पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍


(तस्बीह-जप करने की माला, अना-स्वाभिमान,अलम-दुख,शोक,तजाहुल-जान बूझकर अनजान बनना, सफ़हे -पन्ना,आस्ताँ-चौखट,



37 comments:


  1. रंग बदला,मिजाज बदला और शहर की किस्मत के खातिर इंसानों ने फितरत बदली है

    आदम की किस्मत को फ़र्क करने की तस्बीह
    खूब चली है
    बहुत ख़ूब... वाह

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    1. आभार अमित जी आपकी प्रतिक्रिया उत्साह वर्धन करती सी ..।

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  2. बहुत खूबसूरत ..... लाजवाब 👌👌👌

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    1. उत्साहवर्द्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  3. रंग बदला,मिजाज बदला और शहर की किस्मत के खातिर इंसानों ने फितरत बदली है वाह बेहतरीन रचना 👌👌👌👌

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    1. ब्लॉग पर उपस्थिति एवम् टिप्पणी हेतु धन्यवाद।

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  4. दर -ओ -दम निकाल कर शान्ति की राह निकली है!!!
    बहुत ही सार्थक रचना प्रिय पम्मी जी | सियासत ये सब नहीं करेगी तो सफल कैसे होगी ? सियासत इन्ही प्रपंचों से तो सजती है | बेहतरीन लेखन के लिए हार्दिक बधाई आपको |

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद रेनू जी..आपकी विस्तृत अवलोकन के साथ प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह बढाती है।

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  5. सियासत का खैल है भईया नाचे सब कोई ताता थैया एक अदृश्य ऊंगली पर नाचते सैकड़ों मूरख ना कोई उद्येश्य ना मंजिल सिर्फ ताक धिनी और अराजकता।
    सार्थक रचना पम्मी जी ।

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    2. आपकी शब्दों द्वारा रचना को विस्तार देती प्रतिक्रिया सबसे अलग है साथ ही उत्साह बढाती है।
      धन्यवाद।

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  6. पहली तीन पंक्तियां
    भीड़ तंत्र पर बात चली है
    बेरोजगार भटके युवकों की राह बदली है
    आह,वाह..अना,.अलम के खातिर हुजूम की खूब चली है
    पूरे नज़्म की सार कहता नज़र आता है
    सादर

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार दी।

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  7. वाह वाह पम्मी जी खूब शब्दों को ढाला बातों में....बेहतरीन ये गुफ्तगू लाजमी है !

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    1. जी..आभार
      जो शब्द और मर्म की तह में जा कर एक और गुफ्तगू चली।

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  8. आज के हालात और राजनीति पे सटीक तपसरा है ये लाजवाब रचना ...
    बहुत ख़ूबसूरती से सच को बयान किया है आपने ...

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु ह्रदय से आभार।

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  9. सटीक चिंतन प्रस्तुत करती समसामयिक रचना. चिंता की बात है आज बुद्धिजीवी वर्ग ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर ख़ामोश है. लिखते रहिये. बधाई एवं शुभकामनायें.

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    1. बहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी.सदैव उत्साह बढाती प्रतिक्रिया।

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  10. बहुत उम्दा सृजन

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  11. वाहह...बहुत बढ़िया...भीड़तंत्र हर तंत्र पर भारी है।
    सुंदर भाव और उर्दू शब्दों.के प्रयोग ने रचना निखार दिया है।

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  12. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार श्वेता जी।

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  13. सियासत पर बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई

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    1. आभार सर जी..आप जैसे वरिष्ठ सुधीजनों द्वारा टिप्पणी बहुत मायने रखती है।
      धन्यवाद।

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  14. इबादत न सही पर क्या ?कभी दिलों के मौसम बदलने वाली बात चली है. ..उर्दू शब्दों का बहुत खूबसूरती से प्रयोग किया है आपने पम्मी जी , बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार वंदना जी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु।
      धन्यवाद

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  15. वाह बहुत खूब, भीड़ तंत्र पर जो बात चली है, उसको आपने झकझोर देने वाले अंदाज में बयां किया है। धन्यवाद आपका।

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  16. हालाते हाल पर बहुत उम्दा बयां ..

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  17. सियासत से हावी रहती है सब पर, ऐसे में किसे खबर आम लोगों की
    बहुत खूब!

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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