सृष्टि चिर निरुपम
अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण
आत्मा का न संस्करण
किंजल्क स्वर्ण सरजीत
समस्त भाव
दिव्यपुंज दिव्यपान
प्रज्ञा का भाव
जागृत सुप्तवस्था
निर्गुण निर्मूल
अविवेका,
निः सृत वाणी
अस्तु आरम्भ
सदा निर्विकारी
कर्म अराधना
विकर्म विवेकशून्य
निष्काम कर्मयोग अनुशीलन
संघर्षरत वृत्ति
यदा कदा प्राप्तव्य
अज्ञान निवृत्ति
यजन प्रवृत्ति
संसृति संकल्प
श्रेय और प्रेय विकल्प
व्यष्टिक चेतना अल्प
जटिल सार्विक क्रियाकलाप
स्वार्थ सर्वव्यापी
संकल्पता,साकारात्मक
यथार्थ जीवन का
प्रतिपादित कर्म
©पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍