अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
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अनकहे का रिवाज..
जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...
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पापा .. यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी , आपकी सरपरस्ती में संवर कर ही ख्वाहिशों को जमीं देती रही मग...
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हर तरह से खैरियत है ,होनी भी चाहिए, गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें, तो फिर क्या बात है..!! पर.... कहॉं आसान होता है, शब्दों में ब...
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ख्वाबों की जमीन तलाशती रही अर्श पे दर्ज एहकाम की त लाश में कितनी रातें तमाम हुई इंतजार, इजहार, गुलाब, ख्वाब, वफा, नशा उसे पा...
सुन्दर!!!
ReplyDeleteजी, धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब 👌👌
ReplyDeleteआभार।
Deleteजय श्री कृष्ण।
ReplyDeleteसुंदर दोहे हैं।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं आपको।
जय श्री कृष्णा.. धन्यवाद।
Deleteकर्म और मुक्ति पर सुंदर दोहे ।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteप्रिय पम्मी जी -- श्री कृष्ण को सही अर्थों में परिभाषित करती सुंदर पंक्तियाँ !!!!!!जय श्री कृष्ण ! जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा!आभार।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत... जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण..
Deleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteआभार।
Deleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteजय श्री गणेश
आभार।
Deleteउम्दा दोहे 👌👌
ReplyDeleteआभार।
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