अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
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लेखकीय रूप
अच्छा लगता है जब विशिष्ट समकालीन संदर्भ और तुर्शी के साथ जीवन,समाज के पहलूओं को उजागर करतीं लेख छपती है। इस सफ़र का हिस्सा आप भी बनिए,प...

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कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
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तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
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क्या से आगे क्या ? क्या से आगे क्या ? आक्षेप, पराक्षेप से भी क्या ? विशाल, व्यापक और विराट है क्या सर्वथा निस्सहाय ...
सुन्दर!!!
ReplyDeleteजी, धन्यवाद।
Deleteबहुत खूब 👌👌
ReplyDeleteआभार।
Deleteजय श्री कृष्ण।
ReplyDeleteसुंदर दोहे हैं।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं आपको।
जय श्री कृष्णा.. धन्यवाद।
Deleteकर्म और मुक्ति पर सुंदर दोहे ।
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteप्रिय पम्मी जी -- श्री कृष्ण को सही अर्थों में परिभाषित करती सुंदर पंक्तियाँ !!!!!!जय श्री कृष्ण ! जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा!आभार।
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण..
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteआभार।
Deleteबहुत ही उम्दा
ReplyDeleteजय श्री गणेश
आभार।
Deleteउम्दा दोहे 👌👌
ReplyDeleteआभार।
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