Sep 27, 2018

फिर क्यूँ तुम..



विधाः गज़ल
विषय: बाजार


हसरतों के बाजार में सब्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ तुम तड़पते विस्मिल की तरह।

बाजार-ए-दस्त में  खड़ा जज़्ब-ए-फाकाकश है 
फिर क्यूँ ये वादे साइल की तरह।

तिजारत-सरे-बाजार में तलबगार खुश है
फिर क्यूँ तुम गुजरे गाफिल की तरह।

शोख,वफा,जज़्ब में हिज्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ ये ठहरे साहिल की तरह।

ताजिरो की नियाज से आलिमों की जुबां खामोश है
फिर क्यूँ तुम तड़पे दुआ-ए-दिल की तरह।
                                  ©पम्मी सिंह 'तृप्ति'.. ✍
(गाफिल-भ्रमित, विस्मिल-घायल, साइल-याचक,
ताजिरो-व्यापारी, तिज़ारत-रोजगार, व्यपार, तलबगार- इच्छा रखना, नियाज-भिक्षा, दुआ ए दिल-हृदय की प्रार्थना, जज्ब ए फाकाकश-भूखे रह जीने की भावना)

30 comments:

  1. वाह शानदार गजल पम्मी जी

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  2. ताजिरो की नियाज से आलिमों की जुबां खामोश है
    फिर क्यूँ तुम तड़पे दुआ-ए-दिल की तरह।....
    ...उर्दू की समझ कम है मुझे लेकिन यह रचना अत्यधिक पसंद आई।

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    1. प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  3. बहुत ख़ूब ! अति सुन्दर !!

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  4. बेहतरीन भावों से सजी गजल

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  5. बुद्धि पैसे की गुलाम हो रही है
    बाजार वाद बनती जा रही है शासकीय व्यवस्था और सभी सामायिक मुद्दों पर जबरदस तंज करती आपकी गजल बेहतर से पेशतर!!
    कायल हुए आपकी लेखनी के पम्मी जी।

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    1. समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए तहेदिल से धन्यवाद।

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  6. इस खूबसूरत गजल को धीरे धीरे समझने का प्रयास कर रहा हूं, विशेषकर उर्दू शब्द को

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  7. एक एक शेर पर सहसा ही वाह निकल जाती है

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  8. लाजवाब गजल...
    एक से बढकर एक शेर!!!
    वाह!!!

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  9. वाह ! क्या बात है ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।

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  10. बहुत उम्दा और लाजवाब ग़ज़ल 👌👌

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    1. प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  13. बहुत खूब ...
    जज्बातों की गहरे को तिलिस्मी शब्दों का जामा पहनाया है ...
    लाजवाब ....

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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