विधाः गज़ल
विषय: बाजार
हसरतों के बाजार में सब्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ तुम तड़पते विस्मिल की तरह।
बाजार-ए-दस्त में खड़ा जज़्ब-ए-फाकाकश है
फिर क्यूँ ये वादे साइल की तरह।
तिजारत-सरे-बाजार में तलबगार खुश है
फिर क्यूँ तुम गुजरे गाफिल की तरह।
शोख,वफा,जज़्ब में हिज्र की आजमाइश है
फिर क्यूँ ये ठहरे साहिल की तरह।
ताजिरो की नियाज से आलिमों की जुबां खामोश है
फिर क्यूँ तुम तड़पे दुआ-ए-दिल की तरह।
©पम्मी सिंह 'तृप्ति'.. ✍
(गाफिल-भ्रमित, विस्मिल-घायल, साइल-याचक,
ताजिरो-व्यापारी, तिज़ारत-रोजगार, व्यपार, तलबगार- इच्छा रखना, नियाज-भिक्षा, दुआ ए दिल-हृदय की प्रार्थना, जज्ब ए फाकाकश-भूखे रह जीने की भावना)
वाह शानदार गजल पम्मी जी
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteताजिरो की नियाज से आलिमों की जुबां खामोश है
ReplyDeleteफिर क्यूँ तुम तड़पे दुआ-ए-दिल की तरह।....
...उर्दू की समझ कम है मुझे लेकिन यह रचना अत्यधिक पसंद आई।
प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत ख़ूब ! अति सुन्दर !!
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबेहतरीन भावों से सजी गजल
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deleteसुभान अल्लाह!
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबुद्धि पैसे की गुलाम हो रही है
ReplyDeleteबाजार वाद बनती जा रही है शासकीय व्यवस्था और सभी सामायिक मुद्दों पर जबरदस तंज करती आपकी गजल बेहतर से पेशतर!!
कायल हुए आपकी लेखनी के पम्मी जी।
समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए तहेदिल से धन्यवाद।
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल 👌
ReplyDeleteशुक्रिया..
Deleteइस खूबसूरत गजल को धीरे धीरे समझने का प्रयास कर रहा हूं, विशेषकर उर्दू शब्द को
ReplyDeleteएक एक शेर पर सहसा ही वाह निकल जाती है
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteलाजवाब गजल...
ReplyDeleteएक से बढकर एक शेर!!!
वाह!!!
वाह ! क्या बात है ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteआभार।
Deleteshandar
ReplyDeleteशुक्रिया .
Deleteबहुत उम्दा और लाजवाब ग़ज़ल 👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया..
Deleteशानदार गजल....
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबेहद उम्दा ग़ज़ल...
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteजज्बातों की गहरे को तिलिस्मी शब्दों का जामा पहनाया है ...
लाजवाब ....
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
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