Oct 12, 2018

अब कहाँ..










अब कहाँ…


हैं ये मौसम ही
वक्त के साथ गुजर ही जाएगा
पर क्या...?
आनेवाली जिन्दगियों को गुदगुदाएगा
किए हैं बेजार हमने ही बस्तियों को
अब कहाँ..
बारिशों में कागज के नाव के वो नाखुदा खिलखिलातें हैं..

तारों जमीं की चाह में
किए हैं कई रातें आँखों में तमाम 
पर क्या..?
अश्कों की बातों पर 
पलकों की नमी कह नज़रें गमगुसार किए
अब कहाँ..
रात के आगोश में उल्फ़त से भरे खत लिखे जाते हैं

क्या अच्छा हो!
जो कभी ख्वाहिशों से मुलाकात हो
पर क्या..?
बंद दरवाजें पर दस्तकों से 
मुस्कराने की बात पर वो पलकें भी निसार होगी
अब कहाँ..
चकोर चाँद पर  मचलते हैं..

लफ्जों का असर जाता नहीं
भूलने की कोशिशें से भी भूलाया जाता नहीं
पर क्या ..?
इन लहजों -लहजों ,सलीको  से फर्क  आता नहीं..
अब कहाँ
अल्फाज़ों के दोश पर लोग सवार रहते हैं

ये जो बेहतरी का इल्म लिए फिरते हैं
वो आधी हकीकत है
पर क्या..?
अना की जिद में आइना संगसार नहीं करते
अब कहाँ..
वो काँपते हाथों की हिदायतों पर मौन सजाएँ जाते हैं।
   पम्मी सिंह 'तृप्ति..✍

(दोश:कन्धा )

साहित्यिक स्पंदन में प्रकाशित नज्म..
💠
                                  💠

24 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  2. बेहद खूबसूरत सृजन .

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  3. बहुत ही सुन्दर सृजन

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  4. वाह पम्मी जी सच मजा आ गया उम्दा से पेशतर, उर्दू अल्फाज़ों पर बहुत गहरी पकड है आपकी।
    सुभान अल्लाह ।

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  5. बहुत सुंदर रचना पम्मी जी ... बधाई

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  6. तारों जमीं की चाह में
    किए हैं कई रातें आँखों में तमाम
    पर क्या..?
    अश्कों की बातों पर
    पलकों की नमी कह नज़रें गमगुसार किए
    अब कहाँ..
    रात के आगोश में उल्फ़त से भरे खत लिखे जाते हैं
    पम्मी जी बहुत सुन्दर रचना 👌

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  7. वाह!
    बड़ी संजीदगी और कसक लिये बदलते वक़्त के साथ जीवन में हुए परिवर्तनों का सूक्ष्म अवलोकन प्रस्तुत करती शानदार अभिव्यक्ति.
    "स्पंदन" पत्रिका में नज़्म के प्रकाशन पर बधाई.

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  8. बहुत ख़ूब , भावपूर्ण रचना

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  9. प्रिय पम्मी जी -- बहुत ही शानदार रचना कहूं तो अतिश्योक्ति ना होगी ! समय परिवर्तनशील है पर उसकी अनगिन यादें टीस बनकर कसकती हैं भीतर कहीं |
    अब कहाँ..
    रात के आगोश में उल्फ़त से भरे खत लिखे जाते हैं!!!!!! सचमुच जो चला गया वो वक्त बहुत अलबेला था = पुरानी रवायतें अब कहाँ ? सस्नेह बधाई और शुभकामनाएं !!!!!

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    1. सुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  10. बहुत खूब ... बहुत सुन्दर

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  11. वाह शानदार रचना...

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  12. ये जो बेहतरी का इल्म लिए फिरते हैं
    वो आधी हकीकत है
    पर क्या..?
    अना की जिद में आइना संगसार नहीं करते
    अब कहाँ..
    वो काँपते हाथों की हिदायतों पर मौन सजाएँ जाते हैं।
    अत्यंत सारगर्भित रचना मैम। उन्नत नज़्म

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  13. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  14. बहुत बहुत सुंदर
    लाजवाब रचना

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