May 12, 2018

अर्श पे दर्ज एहकाम ..










ख्वाबों की जमीन तलाशती रही
अर्श पे दर्ज एहकाम की तलाश में कितनी रातें तमाम हुई

इंतजार, इजहार, गुलाब, ख्वाब, वफा, नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई

कुछ तो रहा गया हममें जो जख्म की बातों पर मुस्कराते है
हर सुब्ह संवरता है मानों खिजां में भी फूलों की ऐहतमाम  हुई

जमाने की जद में हम कुछ और बढ गए
अब रक़ीबो  को एहतिराम करते कितनी 
सुब्हो- शाम हुई

लब सिल लिए अमन की खातिर
ज़रा सी सदाकत पर क्या चली मानो शहर में कोहराम  हुई।

           © पम्मी सिंह'तृप्ति'.✍


(एहकाम-आदेश, ऐहतमाम- व्यवस्था, अर्श-आसमान, एहतिराम-कृपा:आदर, ख़िजा-पतझड़, रक़ीब-प्रतिद्वंदी)

23 comments:

  1. लब सिल लिए अमन की खातिर
    ज़रा सी सदाकत पर क्या चली मानो शहर में कोहराम हुई।......वाह!!!
    कुदरती तौर पर आपकी वज़नदार गज़ले किसी के तारीफों के कसीदे के मुहताज नहीं! उम्दा!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

      Delete
  2. ज़मी क्यों छोडी,
    पांव के नीचे से अपने
    अर्श के एहकाम पे
    सदाकत तो साथ थी
    फिर डर कैसा अंजाम से।

    वाह वाह पम्मी जी बेहतरीन, बेमिसाल।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर काव्यात्मक टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

      Delete
  3. वाह !!!बहुत खूबसूरत।मन को छू गई आप की रचना। लाजवाब शब्द चयन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

      Delete
  4. वाह!!बहुत सुंदर ..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया शुभा जी..

      Delete
  5. लब सील लिये अम्न की खातिर

    वाह
    गजब

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

      Delete
  6. कुछ तो रहा गया हममें जो जख्म की बातों पर मुस्कराते है
    हर सुब्ह संवरता है मानों खिजां में भी फूलों की ऐहतमाम हुई
    वाह!!!
    लाजवाब गजल.....

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीया, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।

      Delete

  7. जमाने की जद में हम कुछ और बढ गए
    अब रक़ीबो को एहतिराम करते कितनी
    सुब्हो- शाम हुई
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ !

    ReplyDelete
  8. बहुत-बहुत शुक्रिया..

    ReplyDelete
  9. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु साधुवाद।

      Delete
  10. वाह ...
    अजब से दौर में ले गयी ये नज़्म ... बेहतरीन ...

    ReplyDelete
  11. वाह ! कमाल का लिखतीं हैं आप ! "लब सिल लिए अमन की खातिर " ! लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीया ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु साधुवाद।

      Delete
  12. इंतजार, इजहार, गुलाब, ख्वाब, वफा, नशा
    उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई........ बहुत खूब

    ReplyDelete
    Replies

    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु साधुवाद।

      Delete

अनकहे का रिवाज..

 जिंदगी किताब है सो पढते ही जा रहे  पन्नों के हिसाब में गुना भाग किए जा रहे, मुमकिन नहीं इससे मुड़ना सो दो चार होकर अनकहे का रिवाज है पर कहे...