पापा ..
यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी ,
आपकी सरपरस्ती में संवर कर ही
ख्वाहिशों को जमीं देती रही
मगर अब..
जरा बेताब है मन, घिरती हूँ धूंधले साये से ,
हमारी तिफ़्ल - वश की ज़िद्द और तल्ख लहजों के गहराइयों को अब
हथेलियों के उष्ण में हौसलों को तलाशती रही
आपकी बुजूर्गियत ने ही तो हमें बहलायें रखा
उम्मीद करती हूँ हर पल किसी फ़जल का
पर मगा़फिरत की बात पर आपको
हाथ छोड़ कर जाते देखती रही
खबर तो होगी फितरतें बदलता है आस्मां भी
भंवर में निखरना सिखाया हैं आपने ही
हमारे हक़ में था बस इरादा बदलना
राह के पेचो खम से ग़ुज़रती पर संभलती रही..
©पम्मी सिंह✍
(तिफ़्ल - वश :बच्चों की तरह,फ़जल:कृपा, मगाफिरत:मोक्ष)
बहुत सुंदर..लाज़वाब शब्दों से पिरोया गया पिता के लिए भावपूर्ण अभिव्यक्ति पम्मी दी..बहुत अच्छा लगा👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद श्वेता जी..
Deleteब्लॉग पर आपका स्वागत है..
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
पिता के प्रति ऋण से कब कोई उऋण हो पाया
ReplyDeleteदुआ है सब के सर सदा रहे पिता का साया।
बहुत बहुत सुंदर भावों का संवेदनशील प्रसारण ।
ब्लॉग पर आपका स्वागत है..दीदी,
Deleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु
आभार।
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद दीदी।
Deleteजी उत्तर रचना है, जिसमें अपनों को याद किया गया है, वह भी लाजवाब शब्दचित्र के साथ।
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है..
Deleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
गहन भावों की अभिव्यक्ति । सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसादर
Deleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार अपर्णा जी।
ज़िंदगी के भँवर से निकलना एक पिता भली भाँति समझा जाते हैं बच्चों को उर। ओ भी बिन कहे ...
ReplyDeleteफ़रिश्तों से ऊपर शायद इसलिए ही होते हैं पापा ...
बहुत गहरी और सिल से लिखी रचना ...
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteब्लॉग पर कुछ क्षण व्यतित करने के लिए🙏
वाह पम्मी दी वाह ...लाजवाब लफ्ज लफ्ज सरसा भाव भाव तरसा ...सरपरस्ती के लिये पुनि हृदय तिफ्ल भटका ....
ReplyDeleteइंदिरा जी..शब्दों का मर्म और भाव दोनों को समझ कर इस सुंदर शब्दचित्र से टिप्पणी पर निशब्द हूँ।
Deleteआभार।
गर होगी फजल खुदा की
ReplyDeleteतो होगी मुलाकात उससे
मगफिरत के बाद
और होगा यकीन
वजूद का उसके
पर है ज़मीन पर
हकीकत में खुदा का अहसास
तो वो है पिता ही मेरा
उसके आगे तो मुझे यहां
खुदा भी आता है नजर
यहां बनकर बुत ही!
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteरचना से कहीं सुंदर आपकी कव्यात्मक टिपण्णी हैं
जब शब्द और भावों का मर्म आप सभी तक पहुंचे तो बातें बनती दिखती है।
आभार।
आपकी बेहतरीन उर्दू हमेशा से हमारे लिए ईर्ष्या का विषय रही है।बहुत बेहतरीन लफ्फाज़। मुबारक हो आपको आपकी कलम?!!
ReplyDelete
Delete🙏🙂
ब्लॉग पर आपका स्वागत है..शब्द और भाव जब पाठकों तक पहुंचे तो लिखना अच्छा लगता है।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
VVer nice
ReplyDeleteThank you.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteप्रिय पम्मी जी -- पापाके लिए बेटी के मन की अतल गहरियों से निकले शब्द मन को छु गये |पिता की सरपरस्ती से बढ़कर दुनिया में और क्या ? उर्दू ने रचना की कोमलता और मिठास दोनों बढ़ा दी | सुंदर , हृदयस्पर्शी रचना के लिए सस्नेह बधाई |
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार ..
Deleteशानदार आपने बेटियों के मन की बात कही है पम्मी जी
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..
Deleteबहुत ही सुंदर रचना।।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..
Deleteखबर तो होगी फितरतें बदलता है आस्मां भी
ReplyDeleteभंवर में निखरना सिखाया हैं आपने ही
हमारे हक़ में था बस इरादा बदलना
राह के पेचो खम से ग़ुज़रती पर संभलती रही.... बहुत सुंदर रचना
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..
ReplyDelete