Jun 16, 2018

आपकी सरपरस्ती में संवर कर ..


















पापा ..
यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी ,
आपकी सरपरस्ती  में संवर कर ही
ख्वाहिशों को जमीं देती रही

मगर अब..
 जरा बेताब है मन, घिरती हूँ  धूंधले साये से ,
हमारी तिफ़्ल - वश की ज़िद्द और तल्ख लहजों के गहराइयों को अब
हथेलियों के उष्ण में  हौसलों को तलाशती रही


आपकी बुजूर्गियत ने ही तो हमें बहलायें रखा
उम्मीद करती हूँ हर पल किसी फ़जल का
पर मगा़फिरत की बात पर आपको
हाथ छोड़ कर जाते देखती रही


खबर तो होगी फितरतें बदलता है आस्मां भी
भंवर में निखरना सिखाया हैं आपने ही
हमारे हक़ में था बस इरादा बदलना 
राह के पेचो खम से ग़ुज़रती पर संभलती रही..
©पम्मी सिंह✍

(तिफ़्ल - वश :बच्चों की तरह,फ़जल:कृपा, मगाफिरत:मोक्ष)

30 comments:

  1. बहुत सुंदर..लाज़वाब शब्दों से पिरोया गया पिता के लिए भावपूर्ण अभिव्यक्ति पम्मी दी..बहुत अच्छा लगा👌👌

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    1. धन्यवाद श्वेता जी..
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
      शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  2. पिता के प्रति ऋण से कब कोई उऋण हो पाया
    दुआ है सब के सर सदा रहे पिता का साया।
    बहुत बहुत सुंदर भावों का संवेदनशील प्रसारण ।

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    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है..दीदी,
      शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु
      आभार।

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  3. बहुत सुन्दर...
    शुभकामनाएँ
    सादर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद दीदी।

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  4. जी उत्तर रचना है, जिसमें अपनों को याद किया गया है, वह भी लाजवाब शब्दचित्र के साथ।

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    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
      शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  5. गहन भावों की अभिव्यक्ति । सुन्दर रचना।
    सादर

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार अपर्णा जी।

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  6. ज़िंदगी के भँवर से निकलना एक पिता भली भाँति समझा जाते हैं बच्चों को उर। ओ भी बिन कहे ...
    फ़रिश्तों से ऊपर शायद इसलिए ही होते हैं पापा ...
    बहुत गहरी और सिल से लिखी रचना ...

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
      ब्लॉग पर कुछ क्षण व्यतित करने के लिए🙏

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  7. वाह पम्मी दी वाह ...लाजवाब लफ्ज लफ्ज सरसा भाव भाव तरसा ...सरपरस्ती के लिये पुनि हृदय तिफ्ल भटका ....

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    1. इंदिरा जी..शब्दों का मर्म और भाव दोनों को समझ कर इस सुंदर शब्दचित्र से टिप्पणी पर निशब्द हूँ।
      आभार।

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  8. गर होगी फजल खुदा की
    तो होगी मुलाकात उससे
    मगफिरत के बाद
    और होगा यकीन
    वजूद का उसके
    पर है ज़मीन पर
    हकीकत में खुदा का अहसास
    तो वो है पिता ही मेरा
    उसके आगे तो मुझे यहां
    खुदा भी आता है नजर
    यहां बनकर बुत ही!

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
      रचना से कहीं सुंदर आपकी कव्यात्मक टिपण्णी हैं
      जब शब्द और भावों का मर्म आप सभी तक पहुंचे तो बातें बनती दिखती है।
      आभार।

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  9. आपकी बेहतरीन उर्दू हमेशा से हमारे लिए ईर्ष्या का विषय रही है।बहुत बेहतरीन लफ्फाज़। मुबारक हो आपको आपकी कलम?!!

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  10. ब्लॉग पर आपका स्वागत है..शब्द और भाव जब पाठकों तक पहुंचे तो लिखना अच्छा लगता है।

    शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  11. This comment has been removed by the author.

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  12. प्रिय पम्मी जी -- पापाके लिए बेटी के मन की अतल गहरियों से निकले शब्द मन को छु गये |पिता की सरपरस्ती से बढ़कर दुनिया में और क्या ? उर्दू ने रचना की कोमलता और मिठास दोनों बढ़ा दी | सुंदर , हृदयस्पर्शी रचना के लिए सस्नेह बधाई |

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार ..

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  13. शानदार आपने बेटियों के मन की बात कही है पम्मी जी

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  14. बहुत ही सुंदर रचना।।

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  15. खबर तो होगी फितरतें बदलता है आस्मां भी
    भंवर में निखरना सिखाया हैं आपने ही
    हमारे हक़ में था बस इरादा बदलना
    राह के पेचो खम से ग़ुज़रती पर संभलती रही.... बहुत सुंदर रचना

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  16. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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