अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Sep 25, 2018
Sep 20, 2018
Sep 13, 2018
Sep 3, 2018
Aug 31, 2018
दोहे..
31अगस्त2018
दोहे
विषयःमुनि
1.
मुनि औरों का हित करें,चाहे नित आत्म ज्ञान ।
सच्चे मन से मनन करें, मिल जाएँ भगवान।।
2.
धुनी रमाकर हित करें,अंधकार को दूर।
निज हित से उपर रहे, उस पर रब का नूर।।
3.
तिलक तावीज से भान, घूमते चहूँ ओर।
सद्गुण ही पावन निधान, क्यूँ करते सब शोर।।
4.
सद् मुनि वंदन चिर निरुपम, करते जग का ज्ञान।
सृष्टि वंदन चिर निरुपम, इसका भी करों ध्यान।।
5.
दिव्यपुंज करते समस्त भाव को,जोड़ते हर
विधान।
निश्च्छल करते हृदय को,हैं सारे एक समान।।
6.
श्रेय और प्रेय के भाव, अपने मन का पीर।
तृष्णा है सबके भाव, रख लो मन का धीर
© पम्मी सिंह 'तृप्ति'.✍
दोहे
विषयःमुनि
1.
मुनि औरों का हित करें,चाहे नित आत्म ज्ञान ।
सच्चे मन से मनन करें, मिल जाएँ भगवान।।
2.
धुनी रमाकर हित करें,अंधकार को दूर।
निज हित से उपर रहे, उस पर रब का नूर।।
3.
तिलक तावीज से भान, घूमते चहूँ ओर।
सद्गुण ही पावन निधान, क्यूँ करते सब शोर।।
4.
सद् मुनि वंदन चिर निरुपम, करते जग का ज्ञान।
सृष्टि वंदन चिर निरुपम, इसका भी करों ध्यान।।
5.
दिव्यपुंज करते समस्त भाव को,जोड़ते हर
विधान।
निश्च्छल करते हृदय को,हैं सारे एक समान।।
6.
श्रेय और प्रेय के भाव, अपने मन का पीर।
तृष्णा है सबके भाव, रख लो मन का धीर
© पम्मी सिंह 'तृप्ति'.✍
Aug 20, 2018
सृष्टि चिर निरुपम...
सृष्टि चिर निरुपम
अंतर्मन सा अनमोल भ्रमण
आत्मा का न संस्करण
किंजल्क स्वर्ण सरजीत
समस्त भाव
दिव्यपुंज दिव्यपान
प्रज्ञा का भाव
जागृत सुप्तवस्था
निर्गुण निर्मूल
अविवेका,
निः सृत वाणी
अस्तु आरम्भ
सदा निर्विकारी
कर्म अराधना
विकर्म विवेकशून्य
निष्काम कर्मयोग अनुशीलन
संघर्षरत वृत्ति
यदा कदा प्राप्तव्य
अज्ञान निवृत्ति
यजन प्रवृत्ति
संसृति संकल्प
श्रेय और प्रेय विकल्प
व्यष्टिक चेतना अल्प
जटिल सार्विक क्रियाकलाप
स्वार्थ सर्वव्यापी
संकल्पता,साकारात्मक
यथार्थ जीवन का
प्रतिपादित कर्म
©पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍
Jul 25, 2018
लाजिमी है सियासत ..
भीड़ तंत्र पर बात चली हैं,एक छत के आस में
बेरोजगार भटके युवकों की राह बदली हैं,
आह,वाह..अना,.अलम,आस्ताँ के खातिर
आजकल हुजूम के कारोबार की हवा खूब चली हैं,
दर -ओ-दम निकाल कर ,बे-हिसाब बातों पर
शानदार इबारतें में ,शान्ति की राह निकली हैं,
शहरों के तमाम लफ़्जी बयां के मंजर देख
आँखों पर कतरन बाँध, अब नई राह निकली है,
बिसात किसी और की ,शह ,मात के जद़ में
चंद लोगों को मोहरा बनाने की बात चली हैं,
कलम भी तेरी ,दवात भी तेरी,तजाहुल भी तेरी
अब हर बात पे सफ़हे भी लाल हो चली हैं,
रंग बदला,मिजाज बदला और वो हुनर निखरा
जहाँ पत्थर-दिल इंसानों की फितरत खूब बदली हैं,
एक मुक्कमल सहर के खातिर,हवाओं के रूख भाप
आदम की किस्मत को फ़र्क करने की तस्बीह खूब चली हैं,
लाजिमी हैं सियासत हैं ..और
सियासत में, सवाल,बवाल,मलाल की ही चली हैं,
पर जब बात यूँ निकली तो सवाल हैं ..
इबादत न सही पर क्या?
कभी दिलों के मौसम बदलने वाली बात चली हैं. ..
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍
(तस्बीह-जप करने की माला, अना-स्वाभिमान,अलम-दुख,शोक,तजाहुल-जान बूझकर अनजान बनना, सफ़हे -पन्ना,आस्ताँ-चौखट,
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कैसी अहमक़ हूँ
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