अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Mar 22, 2016
Mar 7, 2016
ये मेआर...
बेटियो से
मधु मिश्रित ध्वनि से पुछा
कहाँ से लाती हो,
ये मेआर
ये मेआर
नाशातो की
सहर
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,
जी..
मैने हँस कर कहाँ
मेरी माँ ने संवारा..
उसी ने बनाया है
स्वयं को कस कर
हर पलक्षिण में
इक नई कलेवर के लिए
शनैः शनैः पोशाक
बदल कर
औरो को नहीं
बस..
इल्म इस बात की
कमर्जफ हम नहीं
हमी से जमाना है...
© पम्मी
© पम्मी
Feb 14, 2016
कल की जिक्र कर...
जुम्बिशे तो हर इक उम्र की होगी
कसमसाहटों की आहटें भी होगींं ,
शायद इसलिए ही
कल की ज़िक्र कर
आज ही संवर जाते ,
ज़िस्त यू ही
कटती जाती
किसी ने कहाँ ?
क्यू कल की चिंता . .
वो भी आजमा कर..
रुकी हुई सी ज़ीस्त
कसमसाती ज़ज़्बातों की आहटें
शायद इसलिए ही
कल की ज़िक्र कर
आज ही संवर जाते हैं
हर उम्र की देहरी को
इस तरह लांघे जाते हैं
क्या जाने ?
इम्ऱोज का फ़र्दा क्या हो
पर हर ज़ख़्म पिए जाते हैं
हर खलिश को दफ़न कर
मुदावा खोज़ लाते हैं
शायद वो फ़र्दा हमारा होगा
ये सोच कर ,.
ज़ुम्बिशें ही सही
दरमांदा ,पशेमान से मुलाकात भी पर बाज़ाब्ता
हर उम्र के इक देहरी को
कुछ इस तरह
लांघे जाते हैं..
- ©पम्मी सिंह 'तृप्ति' ..✍️.
(बाज़ाब्ता-नियमपूवर्क, दरमांदा-विवश, ईमरोज़-आज़,मुदावा-दवा,इलाज)
चित्र गूगूल के संभार से
Jan 31, 2016
Jan 18, 2016
Swarth
स्वार्थ
'स्वार्थ ' शब्द पर परिज्ञप्ति चंद परिज्ञा
जी हाँ, स्वार्थ ऐसी प्रवृति जो हम सभी में विराजमान ..
एक संज्ञा और भाव जो सर्वथा नकारात्मकता ही संजोए हुए है।
प्रश्न है स्वार्थ है क्या ? सच तो यह है कि मात्र यह कभी खुद की भावनाओ
को परिमार्जन करना तो कभी वचन या कर्मो को रक्षा करना ही है। अन्य
भावो की तरह असमंजसता की स्थिति यहाँ भी है इसलिए पर्ितर्कण
कर संकल्पता और सवेदशीलता की पृष्ठभूमि को सुदृढ़ करना होता है।
स्वार्थ की सकारत्मकता लोगो को आपस में जोड़ रखी है। कर्त्तव्य
निर्वहन की ओर अग्रसर होती हुए उत्तम से अतिउत्तम की ओर जाती है।
बरशर्ते स्वार्थ हानिरहित हो अव्यवक्त रूप मे हमारे जीवन का आधार है।
मुख्तलिफ़ शब्द होकर भी राग -अनुराग , हर्ष - विषाद ,मोह -माया ,
गर्व पूर्ण आनन्द की उद्गम स्थल है तो कभी मर्म -वेदना का कारण।
खुद के विकास का स्रोत होकर सभी के जीवन शामिल परन्तु रहस्यवादिता
के साथ हेय दृष्टिकोण .. परन्तु पैठ महत्वपूर्ण है। अगर मात्रा निश्चित
और अनुपात में हो तो अनुभूति और अभिव्यजना दोनों निखरेगी साथ ही यथार्थ जीवन में समन्वय का कारक भी। यदाकदा प्रतिपादित कर्म
का आधार भी बनती है। विस्तृत एवम विवादस्पद शब्द और भाव निश्चित
तौर पर 'मै ' जो शामिल होकर भी आसान नहीं। अनवरत व्याख्या जारी
रहेगी और रहनी भी चाहिए।
( चित्र - गूगल के सौजन्य से }
Dec 29, 2015
Shafak
नव वर्ष की
नवोत्थित शफ़क़
यूँ ही बनी रहे
नवोत्थित शफ़क़
यूँ ही बनी रहे
हमारे एवानो में
आसाइशे से नज़दीकियों की
सफ़र बहुत छोटी हो
साथ ही उन दहकानों की दरे
भी जगमगाती रहे . .
ख्वाबों में भी
इन अज़ीयते से
दूरियाँ बहुत लम्बी हो
इन्सानियत फ़ना होने से
बचती रहे. .
अहद ये करें कि
फ़साने कम हो
इक ही हक़ीक़त बनी रहे .
ये शफ़क़ घरो में
खिलती रहे..
- ©पम्मी..
शफ़क़ -क्षितिज की लाली (dawn)
नवोत्थित -नया उठा हुआ (new rising day)
एवानो - महल (palace.home)
आसाइशों -सुख समृधि (well being)
दहकानों -किसान (farmer)
आसाइशों -सुख समृधि (well being)
दहकानों -किसान (farmer)
अज़ीयते - दुख दर्द (unhappy,sad)
अहद -प्रतिज्ञा (oath)
(चित्र- गूगूल के सौजन्य से )
(चित्र- गूगूल के सौजन्य से )
Dec 8, 2015
Niyat
नीयत
खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है
कभी अहदे - बफा के लिए ,
कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए
मु.ज्तारिब क्या करू
नीयत नहीं . .
दूसरोंं पर कीचड़ उछाल कर
ख़ुद को कैसे साफ़ रखू
कभी खुद के घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की , नीयत
मुख्तलिफ़ होकर भी
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी मसरुफ़ियत
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की ,नीयत
कभी खुद के घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की , नीयत
मुख्तलिफ़ होकर भी
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी मसरुफ़ियत
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की ,नीयत
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कैसी अहमक़ हूँ
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