Dec 8, 2015

Niyat

नीयत

खामोश  जबानों  की भी  खुद  की  भाषा  होती  है 
कभी अहदे - बफा  के  लिए ,
कभी  माहोल को काबिल  बनाने के  लिए 
मु.ज्तारिब क्या  करू
   

नीयत नहीं . . 

दूसरोंं  पर कीचड़ उछाल कर 
ख़ुद को कैसे साफ़ रखू
कभी  खुद  के  घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के  तिनके  
की पाकीज़गी  बनाए रखने  की  , नीयत
मुख्तलिफ़  होकर  भी 
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी  मसरुफ़ियत  
ज़रा  सी.. 
चंद खुशियों  को महफूज़  रखने की ,नीयत

 खामोश  जबानों  की भी  खुद  की  भाषा  होती  है                                   - ©पम्मी .सिंह 'तृप्ति' ..✍️ 
( अहदे -वफ़ा -वफादार ,मुजतारिब -शिकायते मसरूफियत-व्यस्तता,मुख्तलिफ़ -भिन्न,)

22 comments:

  1. यही तो जीवन की उपलब्धि है...बहुत सुन्दर और सटीक चिंतन...

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    1. धन्यवाद,प्रतिक्रया हेतु आभार ..सर

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  2. बहुत खूब जी |

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    1. प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद

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  3. वाह..., क्‍या बात है। ''खामोश ज़बानों की भी खुद की भाषा होती है'' दिल को छू जाने वाली रचना की प्रस्‍तुति। अच्‍छी बात यह कि आपने अपने कमेंट में अपना यूआरएल डाला। इससे मैं आपके ब्‍लाग पर महज 3 सेंकेड में पहुंच सका। धन्‍यवाद।

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  4. वाह..., क्‍या बात है। ''खामोश ज़बानों की भी खुद की भाषा होती है'' दिल को छू जाने वाली रचना की प्रस्‍तुति। अच्‍छी बात यह कि आपने अपने कमेंट में अपना यूआरएल डाला। इससे मैं आपके ब्‍लाग पर महज 3 सेंकेड में पहुंच सका। धन्‍यवाद।

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  6. बहुत सुलझे ढंग से विचारों की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

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  7. बहुत सुलझे ढंग से विचारों की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

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  8. जी प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  9. वाहहह... क्या बात बहुत खूब👌

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    1. शुक्रिया श्वेता जी..

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  10. वाह उम्दा और बेहतरीन ख्याल पम्मी जी।
    बहुत सुंदर रचना।

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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  11. खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर, सार्थक और लाजवाब अभिव्यक्ति...

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    1. शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार..

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