पन्नों पे तख़य्युल के अक्सों को उकेर कर देखो ,
कमाल है, इन अल्फाज़ों में ,
जो कई ज़िंदगी के सार लिख जाते हैं..,
रह कर इन हदों में
लफ्ज़ दिखा जाते .. कई सिल - सिले,
रखती हूँ,
अल्फाजों में खुद का इक हिस्सा
तो निखर जाती है ख्यालों की ताबीर..,
तफसील है ये लफ्ज़, अख्यात जज्बातों का
शउर वाले जबान रख कर सफ्हों पर बिखर जाती..
अल्फाज़ है तर्जुमानी की,
सो स्याही के सुर्खे-रंग को हिना कर देखों..
लहजे तो इनके असर होने में हैं,
हमनें तो बस आज लिखा है..
इन सफ़हे-आइना पर,
क़मर आब की जिक्र कर
तुम अपना कल लिख देना
.. © पम्मी सिंह
तख़य्युल- कल्पना, तफसील -विस्तृत, क़मर-चांद
तख़य्युल- कल्पना, तफसील -विस्तृत, क़मर-चांद