फितूर है..ये,
कई दफा सोचती हूँ.. बड़ा अच्छा होता जो 'मैं' तुम्हारे
किरदार में होती..
मैं तुम होती और मेरी जगह तुम..
और ...मैं नाहक जरा -जरा बात पे चिल्लाती, बोलती..
कुछ भी कर गुज़र जाती और..
तुम चुपचाप सुन लेते..
गिरा कर कुछ खारे मोती.
सफ्हों में खुद को तलाशते,
मैं..चुपके से देखती..
अनदेखी कर
तुम क्या कर रहे हो..
.
शिलाओं के माफिक बन
सबको समझती रहती..
जी,.. ये फितूर ही तो है..
जो सोची.. सोच सोचकर फिर सोची,
क्या?तुम म़े भी वो हुनर होगा..
जिससे खामोश लफ्ज़ों को पढा करते है....
लो..ये सोच फिर चली...
बेजा़र सी पांव पटक पटक कर..
और मैं!..
आराम कुर्सी पर
फितूर सोच,
नींद से बोझिल पलकें...
जो खुली 'संजू' की आवाज़ ..
"बीसन जूता मरबै और एक गिनबै"
(संजू गृह सहायिका अपनी बच्ची को धमकाने
के लिए अक्सर बोल जाती)
मुस्कराहटों को लबों पर लाकर बोली
हाँ..जी फितूर है..
बाम पर चाँदनी ने भी दस्तक दी है..
'वो' भी दफ्तर से आने वाले है '
मुझे भी अपनी पाक कला को आज़माना है...
ये फितूर भी न ...कहाँ से कहाँ तक ले जाती...
पम्मी
(काल्पनिक उड़ान .)
वाह्ह्ह...लाज़वाब सुंद रचना पम्मी जी👌👌
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
कल्पना की उड़ान अच्छा संदेश लेकर आई है। संवेदना की तह खोल दी ऐसी रचनाएं बार बार सोचने पर मजबूर करती है ।बधाई पम्मी जी।
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया
अकल्पनीय फिर भी....
ReplyDeleteकाश मैं तुम होती और तुम मैं....
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
बीसन जूता मरबै और एक गिनबै"
ReplyDeleteतबो न सुधरतये त केना धमकैबये...... सचमुच में फितूर है ये... हा हा हा ...
बहुत मीठी सोंधी सोंधी महक लपेटे दार्शनिक आत्म कथ्य! थोड़ा 'सफ़हों ' का अर्थ भी लिख देती। बधाई !!!
हा हा हा "बीसन जूता...... धमकैबये "बहुत अच्छी तरह से वाक्य को पूरा किया..
Deleteसफ्हों -किताब
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खुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
nice keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया
कल्पना लोक तो कवि की जागीर होती है ! किरदार बदलने के चिंतन ने खूबसूरत रचना को जन्म दिया है ।
ReplyDeleteबाम पर चाँदनी ने भी दस्तक दी है .....
'वो भी दफ्तर से आने वाले हैं '
लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीया ।
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
बहुत सुंदर कल्पना, ये 'काश' हमें कल्पना के उस आकाश में ले जाता है जहाँ सबकुछ हमारे अनुकूल चाहता है और बेहद लुभावना होता है, सचमुच ये फितूर ही है। बहुत खूब।
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
सुंदर कविता
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया..
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गिरा कर कुछ खारे मोती
ReplyDeleteसफ्हों में खुद को तलाशते.....
फितूर कहाँ सच है ये....
बहुत ही संवेदनशील रचना....
लाजवाब..
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 19 जून 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 19 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Deletevery nice post....
ReplyDeleteMere blog ki new post par aapka swagat hai..
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Deleteजी ये फितूर ही तो है ,जो हमें कुछ काल्पनिक सोचने औऱ फिर उसे सुन्दर शब्दों में पिरो लिखने को प्रेरित करता है ।
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया।
वाह !!पम्मी जी ,क्या खूब लिखा है । बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया है कल्पना को।
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया।
बहुत खूब ... ये मन का फितूर ही तो अहि जो हर इर्दार में ढल जाना चाहता है ... पर लौट के भी आना चाहता है ... दिल की कशमकश को रखती सुन्दर रचना ...
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया।
जी,धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
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Deleteखुशी नवाज़ने के लिए शुक्रिया।
फितूर ही कल्पना की उड़ान को बल प्रदान करता है। सचमुच फितूर होना जरूरी है ।
ReplyDeleteश्रेष्ठ कविता, फ़ितूर के विभिन्न सुंदर रूप !बधाई !
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Deleteधन्यवाद।
अतिसुन्दर,,,
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Deleteधन्यवाद।
gajab
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।
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