Jan 26, 2020

नज़्म


देश की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में कुछ शब्द...
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दिल्ली है सहमी हुई, लफ्जों की भूख बढ़ी
दौड़ों, भागों..अंधेरे आयेंगे, उजाले जायेंगे,

और कुछ हो न हो पर..पहरेदारी के आड़े
इसकी, उसकी,सबकी टोपी खूब उछालें जायेंगे,

अहल-ए-सियासत की फितरत ही जहालत है
झूठे वादे से यूँ ही कई महल बनायें जायेंगे,

गर कुछ बिगड़ गया है तो नाम-ए-आजादी ही
हल्ला बोल राजनीति से कब तक छुपायें जायेंगे,

इस बार ही नहीं, हर बार ही, बार - बार
मुद्दतों से यूँ ही नाकामियां छुपायें जायेंगे।
    
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

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Jan 4, 2020

पुस्तक समीक्षा "विह्वल हृदय धारा"

                                          


"विह्वल हृदय धारा" पुस्तक में 24 कवि, कवित्रियों की काव्य रचनाएँ हैं। सम्पादकीय में उल्लेखित पंक्तियाँ ' परम्परा और आधुनिकता को एकसाथ लेकर बढ़ रहे काव्यकार ' को वज़ा ठहरा रही है। पुस्तक काव्य रचनाओं की विविध विधा को समेटे हुए है मानों आसमानी इंद्रधनुषी रंग पुस्तक पर उग आयी हो। कविता, ग़ज़ल, मुक्तक, गीत.... विधाओं में आधुनिकता और परम्पराओं का अवगुंठन है। आकाश को छूने की हुनर और शब्दों की काशीदाकारी.. इसे पढ़ कर ही समझा जा सकता है।
काव्य विकास का नया पड़ाव.. डॉ० सतीशराज पुष्करणा जी..द्वारा उद्वेलित शब्द व्याख्यान सभी रचनाकारों में साकारात्मक नवसंचार भरती है।
आ० नीलांशु रंजन जी द्वारा प्रस्तुत दो शब्द: इस संकलन के विषय में..
'' हम तो अकेले ही चले थे जानिब-मंजिल
लोग आते गए और कारवाँ बनता गया।"

विभा रानी जी के मेहनतकश व्यक्तित्व और सबको साथ लेकर चलने के साथ-साथ, नवांकुर रचनाकारों को एक आयाम भी स्थापित करती है। हर रचनाकारों की कृतियों की समीक्षा के साथ, चंद विश्लेषणात्मक शब्दावली पुस्तकों के पन्ने पलटने को विवश करती है।

कृष्णा सिंह की कविता"महाभारत कथा" पौराणिक पात्रों के जरिए सामाजिक सरोकार, नैतिकता और उपयोगिता को दर्शाया गया है।
"पिता पीपल की छाँव है, साहस का गाँव है"

ज्योति मिश्रा की ग़ज़ल दर्द को समेटे खूबसूरत ग़ज़ल है...
"दर बदर किया उसने लुट गयी ज़मीं दिल की"

कल्पना भट्ट की कविता 'विचलित मन'
'अब जाना है पाठशाला मुझको
जहाँ सीख सकूँ मैं भी कुछ" वर्तमान परिदृश्यों को देख कवि मन की बात उभर कर आयी है..
नसीम अख़्तर की ग़ज़लों की अलग बानगी है..
"चरागे सफ़र कि उसे क्या जरूरत
जो दिल में किसी को बताकर चला है"
आ०निलांशु रंजन जी के शब्दों को लिख रही हूँ.." पम्मी सिंह के मुक्तकों में तकरीबन सभी अच्छे है। पहला व पाँचवाँ मुक्तक खूबसूरत है।

"कौन है जो मेरे सफ़्हों के किरदार में, हर बार मरता है,
क्यूँ ये सियासत नफ़रतों के कारोबार से फलता है,.."

सुबोध कुमार सिन्हा की 'देहदान' और ' यार! गैस सिलेंडर यार ' समसामयिक बेहतरीन रचना है।


कल्याणी सिंह की रचना 'पर्यावरण पर सूली' , 'आत्मशक्ति' कवि हृदय की संवेदनशीलता और उहापोह को दर्शाती है।
संजय कुमार संज की मुक्तक अच्छी है..
"परिवर्तन का दौर है स्वीकार कीजिए
आज नहीं तो कल अंगीकार कीजिए.."


प्रभास कुमार 'प्रभास' द्वारा लिखित 'हर-हर गंगे!' में तारणहार गंगा नदी की लौकिक ,अलौकिक शक्तियों के वर्णन के साथ वर्तमान स्थितियों का विस्तृत वर्णन बहुत सुंदर बनी है।
श्वेता सिन्हा की 'झुर्रियाँ' ..उम्र की दास्तां है। हर झुर्रियाँ गवाह है अपने समय का ..

"खूबसूरत मुखौटे उतार कर यथार्थ से परिचय करवाती झुर्रियाँ" बहुत बढ़िया है।
सुनील कुमार की कविता 'टूट पड़ो आतंकवाद पर' वैश्विक समस्या आतंकवाद पर चोट करती अच्छी रचना है।
'ज्ञान बोझ नहीं ','फिक्र' रचना में संवेदनाओं को संयमित तौर से व्यक्त किया गया है।विभारानी श्रीवास्तव जी की कविताएं सामाजिक अनुभव व मानवीय व्यवहारों को दिखाती रचनाएँ हैं।
कुमारी अमृता , अंकिता कुलश्रेष्ठ की रचनाओं में स्त्रियों की मनोस्थिति और जमीनी हकीकत को दर्शाती रचना है।

पुस्तक का रंग ,आवरण दृश्य क्षितिज की असीमितता को दृष्टिगत कर रही है। पृष्ठभूमि में रचनाकारों की सलंग्न चित्र बहुत सुंदर जो रचनाकारों से एक संबंध स्थापित करती है। यह संकलन विविधताओं का समुच्चय है। मुक्तक, ग़ज़ल.. की भाषा प्रवृत्ति प्रवाहमयी है। व्याकरण कहीं कहीं रह गई है। पर सम्पादक के प्रयास काबिलेतारीफ है। समस्त काव्य कृतियाँ स्वाभाविक,सहज और सजीव है।
 'विह्वल ह्रदय धारा' , समाज के उतार चढ़ाव, मानवीय भावों के तानेबाने को गुनती, स्नेह और पीड़ा से लबरेज़ पुस्तक पठनीय और सहेजने योग्य पुस्तक है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
दिल्ली

पुस्तक: विह्वल हृदय धारा
प्रकाशक:आर०के० बुक एजेंसी पटना
सम्पादक: विभारानी श्रीवास्तव
मूल्य: 150 ₹



Dec 20, 2019

सायली





चित्राभिव्यक्ति रचना

सायली छंद

मासूम
निगहबान नजर
बढाती उम्मीदें, ख्वाहिशें
सीचती मेरी
जमीन।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'

2.
जख्म
वजह बनी
प्रेरित करती आत्मशक्ति,
सुलझती रही
उलझनें।

Nov 17, 2019

भाषा और राजनीति





समाज के विभिन्न बुद्धिजीवी वर्गों के विचारों को संलग्न  करती पत्रिका ' भाषा सहोदरी ' में शामिल मेरी आलेख..

 विषय : भाषा और राजनीति
भाषा और राजनीति के  आरंभिक विकास की रेखाएं, शून्य से प्रारंभ हो एक विशेष लक्ष्य को प्राप्त करती है। भाषा के साथ राजनीति का ना केवल वर्तमान बल्कि भविष्यत् भी विराट है। इन दोनों के गर्भ में निहित भवितव्यताएँ देश के साथ संस्कृति में सकल, सुलभ, संचार भर के रंगमंच पर एक अद्भुत अभिनय करती है।
दार्शनिक विद् अरिस्टोटल “मनुष्य प्रकृति से एक राजनीतिक प्राणी है।“
भाषा:- ब्लॉक एवं ट्रेगर(Bloch and Trager)-“भाषा मनुष्य की वागेन्द्रियों से उत्पन्न यादृच्छिक एवं रुढ़ि ध्वनि प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा एक भाषा समुदाय के सदस्य परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।“ 
मनुष्य के सृजन कर्म की सबसे बड़ी उपलब्धि है भाषा। भाषा मात्र संवाद का माध्यम बन प्रीतिमय समाज के साथ विवेकपूर्ण भाव को भी प्रदर्शित करता है।
भाषा स्वंय में एक सामाजिक प्रक्रिया है, अत: उसकी प्राथमिकता के मूल में ही सामाजिक तत्व निहित रहते है । मनुष्य के यथार्थ आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु सशक्त माध्यम के साथ समाज को  सुसभ्य, सुगम, सहज और सुप्राप्य बनाने में राजनीतिक मुख्य कारक है, तो वहीं भाषा संचार का माध्यम। 
भाषा जीती अर्थात सब जीत लिया। क्योंकि समाज में मनुष्य की भाषा जातिय जीवन के साथ संस्कृति की सर्व प्रधान रक्षिका है। इसका मौजूदा वजूद शील का दर्पण है। भाषा क्षेत्र प्रदेश विशेष की विशिष्ट परंपरा संस्कृति के साथ विचारों के प्रभाव की पहचान है। भाषा राजनीति एक सिक्के के दो पहलू हैं।
 अरिस्टोटल के तर्क को दृष्टिगत किया जाए तो इसका अभिप्राय मनुष्य स्वभावत: एक राजनीतिक प्राणी है, जिसकी बृत्ति संगठित हो समाज के साथ स्वयं को अनुकूल सरंचना में ढालना, वही राजनीति के साथ नीति,रीति, भीती के साथ प्रभावी ढंग से सामंजस्य बना अपना वर्चस्व निभाना है। क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के साथ समाज में अपने क्रियाकलापों रचनात्मक कार्य को संपादित करता रहता, वह शुद्ध तृप्ति, शिक्षा ,दीक्षा आदि सभी को समाज से ही प्राप्त करता है ।साथ ही निरंतर नए-नए विचारों को सुगम में योग्य बनाने हेतु प्रयत्नशील रहता है। राजनीति व्यवहार या सिद्धांत मुखयतः समाजिक तथ्यों ,मूल्यों से ही उत्पन्न होता है। राजनीति में भाषा का वर्चस्व अनायास न होकर पारंपरिक रूप से हुआ है। दोनों के गह समबन्ध इस बिन्दु से है “मनुष्य मात्र सामाजिक प्राणी न होकर राजनीतिक क्रियाओं के साथ -साथ अराजनीतिक क्रियाओं का भी व्यापक क्षेत्र है।राजनीतिक तब तक नहीं समझा जा सकता जबतक व्यक्ति की अराजनीतिक क्रियाओं से जोड़कर न देखा जाए.राजनीति के तीन निर्धारक तत्व है। संख्यात्मक, सरंचनात्मक और संस्कृति। जिसके गर्भ में भाषा ,,भाषाविज्ञान अराजनैतिक तौर पर विराजमान है। भाषा माध्यम बन व्यवहारिक राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाता है। जिसके अंर्तगत एक केन्द्रीय सत्ता का निर्माण और समूहों का विकास है। भाषा माध्यम बन व्यक्तियों और समूहों के साथ राज्य की प्रक्रिया में अधिक से अधिक सहभागिता में वृद्धि करता है।
जिसे भाषा द्वारा अभिव्यक्त कर समाज में नियोजित कर परिस्थितियों के अनुकूल बनाता है। राजनीति का संबंध समष्टिगत हित  चिंतन में समाहित होता है। राजनीति समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं के प्रति प्रगतिशील प्रभावी दृष्टिकोण प्रदान करता है। जिसे भाषा रूपी पुल से नदी के दूसरे छोर की ओर जाना होता है। दोनों का संबंध व्यापक परिप्रेक्ष्य को समेटे हुए हैं।
राजनीतिक प्राय: सामाजिकता के साथ संस्कृति के विकास के अनुकूल विचार संग मानवीय आवश्यकताओं से जुड़ी रहती है । भाषा मात्र व्यक्तिगत अभिव्यक्ति ही नहीं बल्कि इसका आयाम वृहद है। जो तर्क तालुकात् को जन्म दे, विशेष सोच-विचार की ओर ले जाती है, जिसका प्रसार व्यापक सामाजिक संस्कृतिक अनुसंधान के रूप में होता है। राजनीति  अपने राजनीति और सामाजिक अपेक्षाओं के साथ रिश्तो को व्यवस्थित करने के लिए भाषा का प्रयोग करते हैं। लोगों द्वारा व्यक्त विचार धाराओं को जानने समझने के प्रयोजन में खुद को भाषा में ले जाते हैं, जो एक विचार का रिश्ता बना, सामाजिक संबंधों की व्याख्या करता है।
यह राजनीतिक प्रेरणा और अन्य विकल्पों की विधियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ अन्य आयामों पर भी जोर डालती है। राजनीतिक लोकतंत्र में इसकी महत्ता पूरजोर से विधमान है। 
सुसुर Saussur "Language is a system of signs that expresses ideas".
भाषा ना केवल समाज में निहित व्यक्ति  बल्कि पूरे समूह, विशेष समूह के भावों का प्रतिनिधित्व करती है । इसका प्रभाव समालोचनात्मक के साथ संयम एवं धैर्य के परिचय को सुदृढ़ करती है। वही राजनीति यथोचित प्रभाव द्वारा व्यवस्थाओं को व्यवस्थित कर जटिलताओं को दूर करता है। प्रत्येक गतिविधियों का समुचित प्रतिबंध देश के मौजूदा राजनीतिक व्यवस्थाओं से होता है। जिसमें तत्कालीन विचारों, भावनाओं, प्रयासों के साथ उपलब्धियों का समावेश रहता है। समस्त मानव जाति का विकास सार्वभौमिक आदान-प्रदान और सक्रियता से मुख्य धारा के साथ चलने में भाषा की व्यापकता और सापेक्षता को राजनीति को राजनीति के साथ साथ दर्शन और इतिहास से भी जोड़ना होगा। राजनीतिक सचेत व लक्ष्योन्मुख क्रियाकलाप है। अत: समयानुरूप सामाजिक चेतना को पहचानना या भाषाई नब्ज पकड़ना एक विशेष रूप है। राजनीतिक का लक्ष्य अन्तःस्थिति, अंववर्स्तु  को व्यापक तौर पर अंचल प्रदेश, क्षेत्रों में जनता के समक्ष ग्रह योग्य बना, जनता समाज विशेष का सक्रिय समर्थन प्राप्त करना होता है ।इस स्तर पर भाषा सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्य को संपन्न करने के लिए आवाम को लामबंद कर एक दिशा-निर्देश में महत्वपूर्ण साधन है। राजनीतिक संबंध शासन पद्धति की पृष्ठभूमि है तो भाषा का संबंध जीवन विचारों के संचार  अभिव्यक्ति की पद्धति से जुड़ा है। किसी भी देश की समृद्धि और राष्ट्र का विकास भाषा के आधार पर ही हो सकता है। सर्वविदित है कि विकसित देश भी निज भाषियों के आधार पर राजनीति के साथ सामाजिक क्षेत्र में भी अग्रसर हो रहे है। 
 भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन मुख्य तीन विधियों से किया जाता है -समकालीन ,काल क्रमिक और तुलनात्मक । जहाँ समकालीन भाषा अध्ययन में एक विशेष काल बिंदु पर भाषा की स्थिति पर विचार किया जाता है, तो वहीं काल क्रमिक भाषा अध्ययन में विभिन्न काल बिंदुओं पर और तुलनात्मक अध्ययन में दोनों प्रणालियों का मूल विराजमान रहता है। इस परिदृश्य से राजनीतिक विचारधारा भाषा में अन्नोयश्रीत संबंध स्थापित होता है। भाषा और राजनीति के बीच अंत: क्रिया में विभिन्न क्षेत्रों का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है। संचार और मीडिया अनुसंधान, भाषा विज्ञान, व्याख्या अध्ययन ,राजनीतिक विज्ञान, राजनीति समाजशास्त्र या राजनीतिक मनोविज्ञान सहित, कई सामाजिक विज्ञान के विषयों को रेखांकित करता है। राजनीति और भाषा के अध्ययन व्यापक संचार के साथ प्रक्रियाओं की गतिशीलता  है। भाषा का कारोबार सिर्फ साहित्य तक ही सीमित नहीं होता समस्त कानून-व्यवस्था अर्थ नीति व्यापार प्रमाणिक नियामक संस्कृतिक सामाजिक मान्यता या परंपरा से विकसित नैतिक मूल्य बोध अतंत:भाषा के लिबास में ही उपलब्ध होते है।
डनबर (1 99 6) का मानना है कि भाषा दुश्मनों और सहयोगियों और संभावित सहयोगियों को बनाने के सहयोगियों को अलग करने के अति-कुशल साधनों के रूप में विकसित हुई है। डेसैलस (2000) अपने मूल को एक महत्वपूर्ण आकार के 'गठबंधन' बनाने की आवश्यकता में रेखांकित करता है, जो सामाजिक और राजनीतिक, संगठन के प्रारंभिक रूप का प्रतिनिधित्व करता है।

मनुष्य की प्रवृत्ति वाचाल हैं जो सामाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण में सामाजिक संगठन को प्रभावित करता है।भाषा मात्र अभिव्यक्ति का साधन नहीं है बल्कि यह भौतिक सामाजिक व्यवहार के अंशभूत अवयव है। प्रत्येक भाषा विशेष प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनैतिक संदर्भ में अर्जित की जाती है।
भाषा का सम्बन्ध न केवल साहित्य और विचार की दुनिया से है बल्कि भारत जैसे एक बहुभाषिक राज्य में राजनीति और राष्ट्रीय एकीकरण का विषय भी है। भारत के साथ यूरोपीय देशों के इतिहास भी अनेक भाषा संग्राम के साथ उसके राजनीतिक समीकरणों से जुड़ा है। आत्मविस्मृति के इस युग में भी इससें आँखें नहीं फेरा जा सकता है।

राजनीतिक का सार सत्ता के रूपांतरण, में निहित है ,जो जन समूह के अनुरूप हो सके। सत्ता का केन्द्र नेतृत्व है ,जो जन समूह को अपने रूप में ढाल ले। राजनीति का यह द्वन्द्व महत्वपूर्ण बिंदु है। शासक वर्ग, लोगों की चेतना की भाषा को समझने के साथ विवेचना कर अनुकरणीय योग्य बना सके। अतः किसी भाषा को चुनाव   उसकी लिपि के कारण नहीं होता बल्कि वह सत्ता के राजनीतिक सोच के साथ सामाजिक, आर्थिक आधार से भी जुड़ा होता है।
इस प्रकार भाषा और समाज का एक दूसरे से उनकी उत्पत्ति से ही संबंध रहा है जिसके कारण उनकी परिभाषाओं में भी एक दूसरे को स्वीकारे बिना भाषा और समाज की परिभाषाएँ पूर्ण नहीं होती।
समाज के विकास में भाषा के साथ राजनीति का स्थान महत्वपूर्ण होता है,जिसका सफ़र अभिव्यक्ति से आत्मविकास के रास्ते सर्वव्यापी रचनात्मक चेतना की ओर जाती है।
        पम्मी सिंह‘तृप्ति’..

Oct 10, 2019

दोहें






दोहे



नींबू मिर्ची टीके से, राफेल का श्रृंगार।
अंधविश्वासी माया पे ,करो अब सब विचार।।

बुद्धि, विवेक हुए भ्रमित, मौन रीति- रीवाज।
वैज्ञानिक हुए अचंभित, देख रीति- रीवाज।।

पथ- परस्त की बात नहीं, करिये इस पर गौर।
पूजा-पाठ नीज वंदन , नहीं जगत का ठौर।।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..





अनर्गल प्रलाप फेर में, क्यूँ नित्य मचाएं शोर।
तर्क करें ठोस बात पर, यही अस्तित्व की डोर।।

आस्था धर्म न तर्क जाने, न जाने सर्व विज्ञान।
परंपरा के निर्वहन में, न खीचें दुजें .. कान।।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

Sep 26, 2019

ऐसे ही..कुछ बातें...




1

मेरी ज़िद ही ग़लत बनी कि आप के बाद ज़र-जमीं को संभालूँ

अब किसी में न वो बात रहा न ही आप जैसी बात करती हूँ
हजारों बदगुमानी रोज़ उभर कर, तोहमतों से सजती रही-
इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

2

रिश्तों की तिजारत मेरी आदत में शुमार नहीं
गिरहों की इबादत मेरी आदत में शुमार नहीं
कूचा - ए - शहर में अब सब नमक लिए बैठे हैं-
पत्थरों की परस्तिश मेरी आदत में शुमार नहीं।

         पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

Sep 8, 2019

कुछ अलग सी बातें..



विषय से इतर मैं कुछ बात आप सभी सुधीजनों के समक्ष साँझा कर रही हूँ..
विगत दो साल से हमारे परिवार के समक्ष बहुत सारी परेशानियाँ आई, या कहें तो ..जिंदगी हमें आजमा रही थी, परख रही.. छोटी बहन अपने काम के सिलसिले में अमेरिका गई..20 दिन बाद जब लौटी तो महज एक छोटी सा लाल दाना जो तीन, चार दिन पहले ही उभर आया था उसे दिखाने डॉ के पास गई। पर...जो न सुनना था वहीं डॉ ने बोला..कैंसर है..जल्द ही इलाज शुरू करें।

खैर इलाज भी शुरू हो गया पर वो अपनी कामों के प्रति अपनी बिमारी के वज़ह से कभी भी कमजोर नहीं हुई।
अभी इन कठिन परिस्थितियों से हम सभी सामना कर ही रहे थे कि माँ का अचानक ब्रेन हेमरेज हो गया। हम सभी लाचार हो सब देखते रहे। मानो उपर वाले ने परखने की लकीरें बड़ी गहरी बनाई हो।
बेबी (अमिता) तो शारीरीक और मानसिक दोनों और से परेशान थी,बहुत कर्मयोगी हैं.. देखने में छोटी हैं।🙂 थोड़ी जिद्दी भी है..पर ये काम की जिद्द न..कुछ कर गुजरने की वज़ह बनती है।
लगातार दो साल तक अथक प्रयास के बाद वो कई बाधाओं को पार कर अमेरिका से उपर्युक्त विषय पर पेटेंट मिला।
1. DISASTER PREDICTION RECOVERY: STATISTICAL CONTENT BASED FILTER FOR SOFTWARE AS A SERVICE

2. REWARD-BASED RECOMMENDATIONS OF ACTIONS USING MACHINE-LEARNING ON TELEMETRY DATA

3INTEGRATED STATISTICAL LOG DATA MINING FOR MEAN TIME AUTO-RESOLUTION 
बहुत ही खुशी के साथ गर्व की बात है।
मम्मी, पापा (श्री राम प्यारे सिंह, श्रीमती उषा सिंह )का नाम कर दी। पापा हमेशा बोलते थे बेटों से थोडी कम हो तुमलोग..न ही पढ़ाई में अपनी तरफ से कोई कमी की।
हम महिलाओं को भी तुम पर नाज़ है। कौन कहता है कि भाषा का माध्यम inventor, research के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है।
तुम पर तुम्हारा स्कूल, कॉलेज, बिहार,परिवार सब को गर्व है।
बातें तो बहुत सी है..पर इतने पर ही समाप्त कर रही हूँ..
दुष्यंत कुमार जी के शब्दों के साथ..
"कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो"
असीम शुभकामनाएँ।

इस लिंक पर विस्तृत वर्णन है..
https://patents.justia.com/search?q=amita+Ranjan

Women's rights

 Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)  ( article on women...