Sep 26, 2019

ऐसे ही..कुछ बातें...




1

मेरी ज़िद ही ग़लत बनी कि आप के बाद ज़र-जमीं को संभालूँ

अब किसी में न वो बात रहा न ही आप जैसी बात करती हूँ
हजारों बदगुमानी रोज़ उभर कर, तोहमतों से सजती रही-
इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

2

रिश्तों की तिजारत मेरी आदत में शुमार नहीं
गिरहों की इबादत मेरी आदत में शुमार नहीं
कूचा - ए - शहर में अब सब नमक लिए बैठे हैं-
पत्थरों की परस्तिश मेरी आदत में शुमार नहीं।

         पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

11 comments:

  1. उभर कर, तोहमतों से सजती रही इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
    वाह जबरदस्त पम्मी जी ।

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  2. उभर कर, तोहमतों से सजती रही इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
    वाह जबरदस्त पम्मी जी

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    1. प्रतिक्रिया हेतु आभार।

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  3. कूचा - ए - शहर में अब सब नमक लिए बैठे हैं-
    पत्थरों की परस्तिश मेरी आदत में शुमार नहीं।
    वाह!!!
    क्या बात... बहुत लाजवाब....

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  4. बहुत शानदार पंक्तियाँ लिखी हैं आपने।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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  5. रिश्तों की तिजारत में डूबा है आज ज़माना ...
    बहुत ही सुन्दर मुक्तक ... लाजवाब ...

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  6. बहुत ही सुंदर रचना,पम्मी दी।

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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