अब किसी में न वो बात रहा न ही आप जैसी बात करती हूँ
हजारों बदगुमानी रोज़ उभर कर, तोहमतों से सजती रही-
इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
2
रिश्तों की तिजारत मेरी आदत में शुमार नहीं
गिरहों की इबादत मेरी आदत में शुमार नहीं
कूचा - ए - शहर में अब सब नमक लिए बैठे हैं-
पत्थरों की परस्तिश मेरी आदत में शुमार नहीं।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
2
रिश्तों की तिजारत मेरी आदत में शुमार नहीं
गिरहों की इबादत मेरी आदत में शुमार नहीं
कूचा - ए - शहर में अब सब नमक लिए बैठे हैं-
पत्थरों की परस्तिश मेरी आदत में शुमार नहीं।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
उभर कर, तोहमतों से सजती रही इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
ReplyDeleteवाह जबरदस्त पम्मी जी ।
उभर कर, तोहमतों से सजती रही इसलिए आजकल ज़िंदगी से ज़रा कम- कम बात करती हूँ।
ReplyDeleteवाह जबरदस्त पम्मी जी
प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteकूचा - ए - शहर में अब सब नमक लिए बैठे हैं-
ReplyDeleteपत्थरों की परस्तिश मेरी आदत में शुमार नहीं।
वाह!!!
क्या बात... बहुत लाजवाब....
बहुत शानदार पंक्तियाँ लिखी हैं आपने।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
जी,अवश्य..
Deleteधन्यवाद।
रिश्तों की तिजारत में डूबा है आज ज़माना ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मुक्तक ... लाजवाब ...
जी,धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना,पम्मी दी।
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete