Oct 10, 2019

दोहें






दोहे



नींबू मिर्ची टीके से, राफेल का श्रृंगार।
अंधविश्वासी माया पे ,करो अब सब विचार।।

बुद्धि, विवेक हुए भ्रमित, मौन रीति- रीवाज।
वैज्ञानिक हुए अचंभित, देख रीति- रीवाज।।

पथ- परस्त की बात नहीं, करिये इस पर गौर।
पूजा-पाठ नीज वंदन , नहीं जगत का ठौर।।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..





अनर्गल प्रलाप फेर में, क्यूँ नित्य मचाएं शोर।
तर्क करें ठोस बात पर, यही अस्तित्व की डोर।।

आस्था धर्म न तर्क जाने, न जाने सर्व विज्ञान।
परंपरा के निर्वहन में, न खीचें दुजें .. कान।।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

6 comments:

  1. सुन्दर भाव ... गहरा कटाक्ष ...
    थोडा मात्राओं का ध्यान रखें ... दोहों का शिल्प कई जगह ऑनलाइन मिल जाएगा ... सीखना मुश्किल न होगा आपके लिए ... आशा है अप अन्यथा नहीं लेंगी मेरी बात को ...

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    1. जी, धन्यवाद..
      मात्रा भार एक बार और देख ले।
      समीक्षा के लिए आभार।

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  2. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 30 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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अनकहे का रिवाज..

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