देश की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में कुछ शब्द...
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दिल्ली है सहमी हुई, लफ्जों की भूख बढ़ी
दौड़ों, भागों..अंधेरे आयेंगे, उजाले जायेंगे,
और कुछ हो न हो पर..पहरेदारी के आड़े
इसकी, उसकी,सबकी टोपी खूब उछालें जायेंगे,
अहल-ए-सियासत की फितरत ही जहालत है
झूठे वादे से यूँ ही कई महल बनायें जायेंगे,
गर कुछ बिगड़ गया है तो नाम-ए-आजादी ही
हल्ला बोल राजनीति से कब तक छुपायें जायेंगे,
इस बार ही नहीं, हर बार ही, बार - बार
मुद्दतों से यूँ ही नाकामियां छुपायें जायेंगे।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
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अच्छा प्रयास
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-01-2020) को 'धुएँ के बादल' (चर्चा अंक- 3593) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
जी,धन्यवाद।
Deleteअहल-ए-सियासत की फितरत ही जहालत है
ReplyDeleteझूठे वादे से यूँ ही कई महल बनायें जायेंगे,
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब सुन्दर एवं सार्थक सृजन
शुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबेहतरीन सृजन ,सादर नमन पम्मी जी
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत खूब पम्मी जी उम्दा सृजन।
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत ही लाजवाब
ReplyDeleteशुभेच्छा सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभार।
Deleteबहुत अच्छी रचना, बधाई.
ReplyDeleteआभार,आदरणीय।
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच( सामूहिक भाव संस्कार संगम -- सबरंग क्षितिज [ पुस्तक समीक्षा ])पर 13 मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
ReplyDeletehttps://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_12.html
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