अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Jan 18, 2017
Dec 28, 2016
आनेवाली मुस्कराहटों .....
लो गई..
उतार चढ़ाव से भरी
ये साल भी गई...
गुजरता पल,कुछ बची हुई उम्मीदे
आनेवाली मुस्कराहटों का सबब होगा,
इस पिंदार के साथ हम बढ़ चले।
जरा ठहरो..देखो
इन दरीचों से आती शुआएं...
जिनमें असिर ..
इन गुजरते लम्हों की कसक, कुछ ठहराव और अलविदा कहने का...,
पयाम...नव उम्मीद के झलक
कुसुम के महक का,
जी शाकिर हूँ ..
कुछ चापों की आहटों से
न न न न इन रूनझून खनक से...,
हाँ..
कुछ गलतियों को कील पर टांग आई..,
बस जरा सा..
हँसते हुए ख्वाबों ने कान के पास आकर हौले से बोला..
क्या जाने कल क्या हो?
कोमल मन के ख्याल अच्छी ही होनी चाहिए..।
© पम्मी सिंह
(पिंदार-self thought,शाकिर- oblige )

उतार चढ़ाव से भरी
ये साल भी गई...
गुजरता पल,कुछ बची हुई उम्मीदे
आनेवाली मुस्कराहटों का सबब होगा,
इस पिंदार के साथ हम बढ़ चले।
जरा ठहरो..देखो
इन दरीचों से आती शुआएं...
जिनमें असिर ..
इन गुजरते लम्हों की कसक, कुछ ठहराव और अलविदा कहने का...,
पयाम...नव उम्मीद के झलक
कुसुम के महक का,
जी शाकिर हूँ ..
कुछ चापों की आहटों से
न न न न इन रूनझून खनक से...,
हाँ..
कुछ गलतियों को कील पर टांग आई..,
बस जरा सा..
हँसते हुए ख्वाबों ने कान के पास आकर हौले से बोला..
क्या जाने कल क्या हो?
कोमल मन के ख्याल अच्छी ही होनी चाहिए..।
© पम्मी सिंह
(पिंदार-self thought,शाकिर- oblige )

Dec 12, 2016
बड़ा अजीब सफर...
पर वहाँ संयोग जरूर विराजमान थी।
टकराती हूँ चंद लोगो से जो अनभिज्ञ है कि
लफ्ज़ो की भी आबरु होती है..
बोलते पहले हैं सोचते बाद में।
जिसे दीवारो को खुरच कर सफाई करने की बातें कहते,
शब्दों ,बोल और व्यवहार में मुज़्महिल(व्याकुल) इस कदर
मानो सैलाब आ गया ..
शाब्दिक आलाप कुछ और पर मुनासिब अर्थ बता गए.
विरोधाभास यह कि सुने और समझे वही तक जहाँ तक उनकी सोच की सीढी जाती है..
वाकिफ़ हूँ चंद समसमायिक विषयों, व्यक्तिव के पहलूओं और जहाँ की रस्मों से
वरना छिटकी चाँदनी को ही वज़ा करती..।
Nov 29, 2016
जिनमें असीर है कई
जिनमें असीर है कई बातें जो नक़्श से उभरते हैं
खामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...
ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं
न ही हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होती
रफ़ाकते हैंं इनसे पर चुनूंगी हर तख़य्युल को
जब खुशी से वस्ल होगी...
© पम्मी सिंह
.
(आसीर-कैद ,तकरीर-भाषण,रफाकते-साथ,तख़य्युल-विचारो,तकसीम-बँटवारा )
Oct 29, 2016
इस दीवाली कुछ अच्छा सोचते हैं..
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः।।
इस दीवाली कुछ अच्छा
सोचते हैं
ज़ीस्त के अदवार
बेसूद न हो
' तमसो मा ज्योतिर्गमय 'संदेश को ज्योतिर्मय कर
हर पलक्षिण को दीपों
से आलोकित करते हैं,
किताबों की बातें
किताबों में ही न हो
सुख, संतुष्टि,
सद्भावना रूपी जौं को प्रज्जवलित करते हैं,
हसद, हमेव, हब्स को
दूर कर
शबोरोज़ राहों को
मंजिल के करीब लाते हैं,
चलो... इन ख्यालो की
बस्ती से निकल कर
सू-ए-गुलज़ार रूख
मोड़ते हैं,
कुछ इस तरह ...
हर आसताँ को दीपमय
कर रौशन करते हैं.
©पम्मी सिंह
(हसद-ईष्या,हब्स-रूकावट,हमेव-अंहकार,आसताँ-चौखट,सू-ए-गुलज़ार-बाग
की तरफ)
Oct 5, 2016
Aug 29, 2016
आसमान को और झुकना..
आसमान को और झुकना..
आसमान को और झुकना
पड़ेगा
न जानू फिज़ाओ की
आगोश की बातें..
ख्वाहिशों की मुरादो
को पूरा करना पड़ेगा
छोड़ो आज़ खोने की
बातें
पाने के हुनर की
ज़िक्र करना पड़ेगा
जहर न बन जाउ
पीते-पीते
अमृत की भी आस करना
पड़ेगा
सहरा में सराबो से
वास्ता सही..
अब्र की आस करना
पड़ेगा
सरसब्ज़ की तलाश में
सदमात को भी वाज़िब
करना पड़ेगा..
©पम्मी सिंह
©पम्मी सिंह
(सहरा-रेगिस्तान
,सराबो-जल भ्रम,सदमात-आघात)
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कैसी अहमक़ हूँ
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पापा .. यूँ तो जहां में फ़रिश्तों की फ़ेहरिस्त है बड़ी , आपकी सरपरस्ती में संवर कर ही ख्वाहिशों को जमीं देती रही मग...
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