आसमान को और झुकना..
आसमान को और झुकना
पड़ेगा
न जानू फिज़ाओ की
आगोश की बातें..
ख्वाहिशों की मुरादो
को पूरा करना पड़ेगा
छोड़ो आज़ खोने की
बातें
पाने के हुनर की
ज़िक्र करना पड़ेगा
जहर न बन जाउ
पीते-पीते
अमृत की भी आस करना
पड़ेगा
सहरा में सराबो से
वास्ता सही..
अब्र की आस करना
पड़ेगा
सरसब्ज़ की तलाश में
सदमात को भी वाज़िब
करना पड़ेगा..
©पम्मी सिंह
©पम्मी सिंह
(सहरा-रेगिस्तान
,सराबो-जल भ्रम,सदमात-आघात)
आसमान को और झुकना पड़ेगा। बेशक ख्वाहिशें बहुत हैं, इसलिए झुकना तो पड़ेगा ही। बहुत ही सुंदर और यथार्थ को प्रस्तुत करती हुई रचना।
ReplyDeleteरचना पर अपने बहुमूल्य समय देने एवम् टिप्पणी पढकर खुशी हुई... बहुत बहुत शुक्रिया.
Deleteआसमान को और झुकना पड़ेगा। बेशक ख्वाहिशें बहुत हैं, इसलिए झुकना तो पड़ेगा ही। बहुत ही सुंदर और यथार्थ को प्रस्तुत करती हुई रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब ... सब इच्छा शक्ति की बातें हैं ... आशावादी मन सब कुछ करने को आतुर रहता है ... पाने का हुनर मिल ही जाता है ...
ReplyDeleteरचना पर अपने बहुमूल्य समय देने एवम् टिप्पणी पढकर खुशी हुई... बहुत बहुत शुक्रिया.
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल... उम्दा खयालात
ReplyDeleteJi,dhanyawad..
Deleteकई बीज गिरे धरती पर बस कुछ ही उगे तो कुछ पौधे रह गये । तो कुछ बने पेड़ ।
ReplyDeleteKya baat hai...badhiya panktiya
DeleteDhanywad khubsurat line ke liey..
वाह !!
ReplyDeleteबहुत खूब
Ji, dhanywad...
ReplyDeleteवाह! आपकी रचनाओ से रु ब रु होकर 'पाने के हुनर की ज़िक्र करना पड़ेगा'।बहुत उम्दा। और मुबारक हो सहरा में सराबों के संग अब्र की आस को।
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय, रचना पर टिप्पणी एवं सराहना हेतु आभारी हूँ।
Deleteकुशल चयन! बधाई!
ReplyDeleteजी,धन्यवाद।
Delete