आँखों में कुछ नमी
सी...
आज छत से ..
मैने सूरज को उगते
देखा
कई रंगो में ढल कर
इक नई रंग में ढलते
देखा
हमारे हिस्से की धूप
हमीं तक थी,
मन में कुछ सुकून सी
थी..
हमारी कली जो
आज फूल बनकर
खिलखिलाएँ हैं,
हमारी
शादव्ल,शफ़़फा़फ जौ इन्हीं से हैं
समेटती हूँ ..इन लम्होंं के अहसासों को,
जो हमारे हिस्से की
फूल बन कर खिलखिलाएँ हैं,
दरीचो के पीछे से झाँकती
दो आँखें
रिजक-ए-अहसास ही हैंं,
जो हर गम में भी
मुस्कराएँ हैं..
देखो न..
इन मुस्कराती आँखों के कोरों में
फिर कुछ नमी सी है..,
खेल है धूप छाँव की
पर कुछ सुकून सी
है..।
©पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍
(शादव्ल-हराभरा,शफ़फाफ़-उजला,धवल,रिजक-धन दौलत)
Some dewy tears in eyes...
Pronto I have seen rising Sun from our house top
the allurement of dawn and
It's changed in unique colors.
part of Sun rays which belongs to me
reached for me
today all buds changes in flowers
all greenery and pearly are accessible from this
try to collect all feelings and emotions.
ours share of the Sun beaming
a couple of eyes peeping from the small window
these feelings became to our wealth
which was smiling even in dismal...
please, see... still, some dewy tears are smiling in eyes
game of light and shade
but still, there is some amenity...
©pammi singh
( a poem about when we see our growing child... )
मुस्कुराती आँखों की नमी, हिस्से की धूप और सूरज...
ReplyDeleteबस कमल ही है शब्दों में.
नन्ही परी को आशीर्वाद
Pratikriya hetu aabhar:)
Deleteबहुत सुन्दर कृति ..
ReplyDeletePratikriya hetu aabhar:)
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजीवन में सुकून से आगे क्या है ... कुछ भी नहीं ...
ReplyDeleteभाव पूर्ण शब्द हैं ...
आंखों में कुछ नमी बेहद शानदार रचना के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत हुई है। बहुत ही भावमय है।
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'सोमवार' ०८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें .
बहुत सुंदर शब्दों से गूँथी खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteशुभ प्रभात..
ReplyDeleteरथयात्रा की शुभकामनाएं
आज छत से ..
मैने सूरज को उगते देखा
कई रंगो में ढल कर
इक नई रंग में ढलते देखा
सादर
देखो न..
ReplyDeleteइन मुस्कराती आँखों के कोरों में
फिर कुछ नमी सी है..,
खेल है धूप छाँव की
पर कुछ सुकून सी है..।
वाह !!!
इन मुस्कराती आँखों के कोरों में
ReplyDeleteफिर कुछ नमी सी है..,
खेल है धूप छाँव की
पर कुछ सुकून सी है..।
बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन
वाह!!!
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteआँखों के कोरों की नमीं में ही
ReplyDeleteहम ढूँढ़ लेते हैं धूप छाँव
ज्यूँ शहरों की बालकनी में गमले लगा
सोचते हैं कि पहुँच गए गाँव ।
बेहतरीन नज़्म