Nov 29, 2016

जिनमें असीर है कई



यूँ तो कुछ नहीं बताने को..चंद खामोशियाँ बचा रखे हैं

जिनमें असीर है कई बातें जो नक़्श से उभरते हैं


खामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...


ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं

क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं 

न ही हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होती

रफ़ाकते हैंं इनसे पर चुनूंगी हर तख़य्युल को

जब  खुशी से वस्ल होगी...
                                  ©  पम्मी सिंह
.

(आसीर-कैद ,तकरीर-भाषण,रफाकते-साथ,तख़य्युल-विचारो,तकसीम-बँटवारा )

22 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना है.

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  2. वाह!!बहुत सुन्दर

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  3. पम्मी जी आपकी रचनाओं में उर्दू शब्दों का प्रयोग अधिक होता है. मेरी उर्दू बहुत कमजोर है. मैने समझने की कोशिश की पर जेहन में अच्छी तरह से उतार नहीं पाई. कृपया सभी उर्दू के शब्दों के अर्थ भी लिखा करें. आभारी☺️

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  4. वाह!!!
    खामोशियों की क्या?कोई कहानी नहीं....।
    सार्थक प्रस्तुति

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    1. आपका सकारात्मक विचार स्वागतयोग्य है. टिप्पणी के लिये आभार।

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  5. वाह ! क्या कहने है ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब

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    1. आपका सकारात्मक विचार स्वागतयोग्य है. टिप्पणी के लिये आभार।

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  6. वाकई मीठी जुबान में रूहानी अफ़साने क़ाबिले तारीफ है। ऊपर से सूद में उर्दू की तालीम अलग से। बहुत बहुत शुक्रिया!

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  7. बेहतरीन..
    ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
    क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं
    स्वास्थ्य का ध्यान रखिएगा
    सादर..

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  8. संगीता दी के परिश्रम स्वरूप आपकी पुरानी रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,बेहद रूहानी रचना ,हार्दिक ख़ुशी हुई आप सभी ने इस जंग को मात दे दिया। उम्मीद है अब स्वस्थ बेहतर होगा ,सादर नमन पम्मी जी

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  9. खामोशियों की क्या ? कोई कहानी नहीं...वाह...हर खामोशी की हजार कहानियां हैं, लेकिन कितनी कहानी हो पाती हैं ये वक्त तय करता है। बहुत खूब

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  10. वाह ! बहुत सुंदर !

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  11. ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
    क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं
    बहुत खूब पम्मी जी ! आपकी पुरानी रचना को पढ़कर और आपको स्वस्थ , , सक्रिय देखकर बहुत ख़ुशी हुई | जल्द ही पूर्ण स्वस्थ होकर ब्लॉग पर वापसी करेंगी , ऐसी कामना करती हूँ | हार्दिक शुभकामनाएं|

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