पर वहाँ संयोग जरूर विराजमान थी।
टकराती हूँ चंद लोगो से जो अनभिज्ञ है कि
लफ्ज़ो की भी आबरु होती है..
बोलते पहले हैं सोचते बाद में।
जिसे दीवारो को खुरच कर सफाई करने की बातें कहते,
शब्दों ,बोल और व्यवहार में मुज़्महिल(व्याकुल) इस कदर
मानो सैलाब आ गया ..
शाब्दिक आलाप कुछ और पर मुनासिब अर्थ बता गए.
विरोधाभास यह कि सुने और समझे वही तक जहाँ तक उनकी सोच की सीढी जाती है..
वाकिफ़ हूँ चंद समसमायिक विषयों, व्यक्तिव के पहलूओं और जहाँ की रस्मों से
वरना छिटकी चाँदनी को ही वज़ा करती..।
लफ्ज़ो की भी आबरु होती है..
ReplyDeleteबोलते पहले हैं सोचते बाद में।
सुभान अल्लाह !!!
Pratikriya hetu aabhar,sir.
Deleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। मुझे बेहद पसंद आई। बहुत दिनों के बाद अपने ब्लाग पर सक्रिय हुआ हूं। कुछ तकनीकी खामियों के चलते बहुत असहज महसूस कर रहा था। बस इसी तरह सक्रिय बना रहूं। तो शायद मेरे लिए अच्छा रहेगा।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। मुझे बेहद पसंद आई। बहुत दिनों के बाद अपने ब्लाग पर सक्रिय हुआ हूं। कुछ तकनीकी खामियों के चलते बहुत असहज महसूस कर रहा था। बस इसी तरह सक्रिय बना रहूं। तो शायद मेरे लिए अच्छा रहेगा।
ReplyDeletePratikriya hetu aabhar,sir
DeleteAap blog per sakriya hi rahay..
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeletePratikriya hetu aabhar,sir
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने इस दुनिया में सबसे कीमती होते हैं ये शब्द जिसे लोग यूँही बिखेर देते हैं बिना किसे तथ्य के।
ReplyDeleteअत्यंत सारगर्भित प्रस्तुति ।