अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Jan 31, 2016
Jan 18, 2016
Swarth
स्वार्थ
'स्वार्थ ' शब्द पर परिज्ञप्ति चंद परिज्ञा
जी हाँ, स्वार्थ ऐसी प्रवृति जो हम सभी में विराजमान ..
एक संज्ञा और भाव जो सर्वथा नकारात्मकता ही संजोए हुए है।
प्रश्न है स्वार्थ है क्या ? सच तो यह है कि मात्र यह कभी खुद की भावनाओ
को परिमार्जन करना तो कभी वचन या कर्मो को रक्षा करना ही है। अन्य
भावो की तरह असमंजसता की स्थिति यहाँ भी है इसलिए पर्ितर्कण
कर संकल्पता और सवेदशीलता की पृष्ठभूमि को सुदृढ़ करना होता है।
स्वार्थ की सकारत्मकता लोगो को आपस में जोड़ रखी है। कर्त्तव्य
निर्वहन की ओर अग्रसर होती हुए उत्तम से अतिउत्तम की ओर जाती है।
बरशर्ते स्वार्थ हानिरहित हो अव्यवक्त रूप मे हमारे जीवन का आधार है।
मुख्तलिफ़ शब्द होकर भी राग -अनुराग , हर्ष - विषाद ,मोह -माया ,
गर्व पूर्ण आनन्द की उद्गम स्थल है तो कभी मर्म -वेदना का कारण।
खुद के विकास का स्रोत होकर सभी के जीवन शामिल परन्तु रहस्यवादिता
के साथ हेय दृष्टिकोण .. परन्तु पैठ महत्वपूर्ण है। अगर मात्रा निश्चित
और अनुपात में हो तो अनुभूति और अभिव्यजना दोनों निखरेगी साथ ही यथार्थ जीवन में समन्वय का कारक भी। यदाकदा प्रतिपादित कर्म
का आधार भी बनती है। विस्तृत एवम विवादस्पद शब्द और भाव निश्चित
तौर पर 'मै ' जो शामिल होकर भी आसान नहीं। अनवरत व्याख्या जारी
रहेगी और रहनी भी चाहिए।
( चित्र - गूगल के सौजन्य से }
Dec 29, 2015
Shafak
नव वर्ष की
नवोत्थित शफ़क़
यूँ ही बनी रहे
नवोत्थित शफ़क़
यूँ ही बनी रहे
हमारे एवानो में
आसाइशे से नज़दीकियों की
सफ़र बहुत छोटी हो
साथ ही उन दहकानों की दरे
भी जगमगाती रहे . .
ख्वाबों में भी
इन अज़ीयते से
दूरियाँ बहुत लम्बी हो
इन्सानियत फ़ना होने से
बचती रहे. .
अहद ये करें कि
फ़साने कम हो
इक ही हक़ीक़त बनी रहे .
ये शफ़क़ घरो में
खिलती रहे..
- ©पम्मी..
शफ़क़ -क्षितिज की लाली (dawn)
नवोत्थित -नया उठा हुआ (new rising day)
एवानो - महल (palace.home)
आसाइशों -सुख समृधि (well being)
दहकानों -किसान (farmer)
आसाइशों -सुख समृधि (well being)
दहकानों -किसान (farmer)
अज़ीयते - दुख दर्द (unhappy,sad)
अहद -प्रतिज्ञा (oath)
(चित्र- गूगूल के सौजन्य से )
(चित्र- गूगूल के सौजन्य से )
Dec 8, 2015
Niyat
नीयत
खामोश जबानों की भी खुद की भाषा होती है
कभी अहदे - बफा के लिए ,
कभी माहोल को काबिल बनाने के लिए
मु.ज्तारिब क्या करू
नीयत नहीं . .
दूसरोंं पर कीचड़ उछाल कर
ख़ुद को कैसे साफ़ रखू
कभी खुद के घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की , नीयत
मुख्तलिफ़ होकर भी
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी मसरुफ़ियत
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की ,नीयत
कभी खुद के घोंंसले ,
कभी दूसरोंं के तिनके
की पाकीज़गी बनाए रखने की , नीयत
मुख्तलिफ़ होकर भी
मुक्कमल जहान है
ये ख़ामोशी नहीं अपनी मसरुफ़ियत
ज़रा सी..
चंद खुशियों को महफूज़ रखने की ,नीयत
Nov 23, 2015
Rishtey
रिश्ते
आप सभी का अभिनन्दन,
ब्लॉग जगत का एक कोना जहाँ कलम भी अपनी दवात भी अपनी और विचार भी अपने। .
चलें आज हम आप और अन्तर्मन से उठी विचार '' रिश्ते '' से सम्बन्धित चन्द शब्द......
जी हाँ , तनु शब्द ' रिश्ते ' जो एकाकी शब्दावली होकर भी अनेकानेक रुप मे हमसभी में पैठ बनाई है। सरल ,सुलभ ,सुलझी होकर भी समस्त जन इसकी मायाजाल मे उलझी हुई.. प्रभावशाली पूर्वक अपना प्रभाव कौन ,कहाँ ,किससे ...प्रश्न मृत्युपर्यन्त भी जारी रखने मे सक्षम। मायाजाल इस कदर की तमाम कशिश और टकराहट होते हुए भी कभी जीने की वजह ,कभी जीने को विवश ,कभी जीवन को अग्रसर करती हुई पूरी जीवन को बदल डालने की कुवत रखती। इसकी मजबूत पृष्ठभूमि बनाने के क्रम में अनेक व्यवस्थाओं और अव्यवस्थाओं से रूबरू होना क्योंकि ये अनेक भाव ,अहसास और सवेंदनाओ को आत्मसात की हुई है। मृगमरीचिका की तरह जब यह महसुस कि इस रिश्ते में हमने फ़तह हासिल कर ली उसी वक्त से खोने ,हारने की डर सताने लगती या दूर भागती प्रतीत होती, वहीं से नयी सवेंदनाओँ का प्रादुर्भाव आरम्भ होने लगती। रिश्तो को पकड़ने और जकड़ने की जद्दोज़हद शुरु हो जाती ..... पुन : शून्य से आरम्भ आहिस्ता आहिस्ता शाम की और कदम बढ़ती जाती ...अपनी जिंदगी समटने ,क़रीने से सजाने में।
उमंग , उत्साह का संचारण बना रहे इसलिए कभी पुरानी किताबो के बाहरी परत को रंगीन कभी अंदरुनी पन्नो को कटने ,फटने से बचाने के लिए धूल झाड़ती रहती .. इनका निर्वहण साधना के समान ही है जिसप्रकार साधना की उन्नत अवस्था मे विशिस्ट कल्पनाए उठती उसी प्रकार सम्बन्धों के साथ भी विचारो और सपनो का वेग।
साधना में पल - पल क्षय ,घटाव का आभास होता रिश्तो में भी हर पल खोने ,विखरने की आहट बनी रहती।
किसने ? कहा कि इसका परिचय सीधा और सरल है। हर किरदार में सफलता ? मुश्किल हैं। अपने दोनों हाथो से समेटने के क्रम में मन ,तन ,धन को बिखरना पड़ता है। शारीरिक अस्तित्व के समाप्ती के बाद भी अन्य रुप से रिश्तेदारी निभाने मे सक्षम। दर्द और खुशी का समन्वय हि हमारे रिश्ते की पहचान ...
Oct 29, 2015
तलाश
तलाश
स्वतंत्रता तो उतनी ही है हमारी
जितनी लम्बी बेड़ियों की डोर
हर इक ने इच्छा, अपेक्षा,
संस्कारो और सम्मानो की
संस्कारो और सम्मानो की
सीमाए डाल रखी है,
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
किसी ने कहीं देखा है?
वो इक आकाश का टुकड़ा
वो इक आकाश का टुकड़ा
जहाँ हम ही हम हो,
उन्मुक्ता, अधिकार मिली सभी चराचर को
फिर. ..
फिर. ..
हमे मांगना ही क्यों पड़ा
क्यू न हो ऐसा कि
स्वतंत्रता सब की जरूरत बन जाए...
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
फिर..
उस वसुन्धरा की काया
कुछ और ही होती
तलाश है...
- © पम्मी सिंह 'तृप्ति'..
(चित्र गूगल के सौजन्य से )
(चित्र गूगल के सौजन्य से )
Sep 30, 2015
Kuchh
कुछ
भावनाओं , संवेदनाओं एवम विचारों की प्रस्तुतिकरण की प्रयास ताकि शब्द और भावो की अभिवयक्ति संजीदगी से हो कुछ से सबकुछ का सफर..…
ये जिन्दगी की राह हमें अनेक घटनाओं से रूबरू कराती है। चुन-चुन कर थोड़ी ख़ुशी ज्यादा से बहुत जयादा की अपेक्षा मे अनेकाएक फूल और पत्तों को झोली मे डालने के क्रम मे न जाने कितनी बार कभी हाथो को तो कभी अपनी मनोभावों को इच्छा अनिच्छा से घायल करना और होना पड़ा.….... देखा जाए तो अवसरों का अभाव न पहले था न होगा।
कुछ अवसरें भी प्राप्त होती हैं । प्रश्न गुणवत्ता एवं मात्रा की होती है, सफलता की महत्ता चुनाव पर निर्भर है। कब , कहाँ और कैसे , किस तरह के प्रश्न। हाँ … ये प्रश्न आकांक्षा और समाधान के चक्रव्यूह मे ही तो है। जिंदगी की एक बड़ी भाग इसी तनाव में गुजर जाती है कि इच्छा क्या है ? किसी एक की चुनाव और कोशिश मे चूक हो जाती है. . असमंजसता , अपेक्षताएं की स्थिति बलवती होती है कि विवेकशुन्यता की ओर कदम बढ़ती हुई जान पड़ती है। संघर्ष की प्राररभाव भी यही से उद्भव होती है रेत हथेलियों मे ही रहे.…
इस जद्दोज़हद को फलदायक रूपी बनाने के लिए संघर्षशीलता , कर्मठता और संकल्पता की पृष्ठभूमि को सुदृढ़ करने की आवश्कता है। भूमि का प्रभाव सकारात्मक हो तो कर्तव्य निर्वाहन की ओर अग्रसर। क्षणिक व्यवस्थाओं और अव्यवस्थाओं से ऊपर उठ कर क्रियात्मक अनुशीलन ही जीवन निर्वहन है।
कुछ अपनत्व की चाह में , राह में..… रिश्तों को जोड़ने- तोड़ने , समझने की व्याकुलता कतिपय कारणों से अनेक मनोगत भावों से गुजरना पड़ा क्योकि समस्त भाव व्यक्त करने मे नहीं आती, कुछ भाव भंगिमा से शेष क्रियात्मक की श्रेणी मे आती हैं। यहाँ दूरदर्शिता के प्रभाव से नहीं बचा जा सकता परन्तु मात्र स्वपनशील न होकर समाधानकर्ता के रूप मे किया जाए तो सफलता अवश्य है। कुछ या किसी एक का चुनाव एवम कर्म के प्रति उत्कण्ठा को जागृत करना सदसत् प्रवृत्तिओं की संघर्ष है। साधारण मनुष्यों (कुछ और किसी एक ) में सम्बन्ध गहरा है , द्व्न्द् सदा से रही है। इनका होना जीवनशैली की सार्थकता और संतुलित प्रदान करती है।
आम हुँ पर संज्ञाशून्य नहीं इसलिए लाख जतन के बाद भी कृतित्व गहरी नींद मे नहीं है..…कुछ और हरी भरी की चाह मे संघर्षरत बनी रहेगी।
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कैसी अहमक़ हूँ
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