तलाश
स्वतंत्रता तो उतनी ही है हमारी
जितनी लम्बी बेड़ियों की डोर
हर इक ने इच्छा, अपेक्षा,
संस्कारो और सम्मानो की
संस्कारो और सम्मानो की
सीमाए डाल रखी है,
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
किसी ने कहीं देखा है?
वो इक आकाश का टुकड़ा
वो इक आकाश का टुकड़ा
जहाँ हम ही हम हो,
उन्मुक्ता, अधिकार मिली सभी चराचर को
फिर. ..
फिर. ..
हमे मांगना ही क्यों पड़ा
क्यू न हो ऐसा कि
स्वतंत्रता सब की जरूरत बन जाए...
तलाश है उस थोड़े से आसमान की
फिर..
उस वसुन्धरा की काया
कुछ और ही होती
तलाश है...
- © पम्मी सिंह 'तृप्ति'..
(चित्र गूगल के सौजन्य से )
(चित्र गूगल के सौजन्य से )
प्रशंसनीय
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतु आभार,sir
ReplyDeleteबहुत खूब |
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रतिक्रिया हेतू आभार, सर.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" सशक्त महिला रचनाकार विशेषांक के लिए चुनी गई है एवं सोमवार २७ नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteजी,धन्यवाद..
Deleteवाह!! स्वतंत्रता तो उतनी ही हे, हमारी जितनी लम्बी बेड़ियों की डोर,... पहली ही पंक्ति में आपने सब कुछ समाहित कर दिया,एक स्त्री की इच्छा उसकी उड़ने की गति , बेहतरीन लिखा पम्मी जी आपने ...!!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteमर्म समझने के लिए आभार आपका..
आदरणीय पम्मी जी -- अपेक्षाओं की व्यर्थ बेड़ियों में बंधा शायद हर नारी मन इन भावों से होकर गुजरता है | बहुत ही सार्थक रचना -- सादर सस्नेह --
ReplyDeleteब्लॉग अनुसरणकर्ता गैजेट लगाइये।
ReplyDeleteसुन्दर।
बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteस्वतंत्रता की तलाश....
ReplyDeleteफिर उस वसुन्धरा की काया कुछ और ही होती....
वाह!!!
अद्भुत चिन्तन
लाजवाब अभिव्यक्ति...
बहुत बहुत शुक्रिया..
Deleteमर्म समझने के लिए आभार आपका..