Mar 7, 2023

रंग,रुबाई अंग -अंग में..


 


अहो!!
मतवारी हुई फागुनी रंग में
नैन हुई मतवाली भंग में
रंग,रुबाई अंग -अंग में,
अहो!!बोलों तो सही
फागुन कहाँ कहाँ बसायें हो?

समंदर समाया आज गिलास में..
नाचते बादल जमीं के तलाश में..
कदम लहक रहे फागुनी बतास में.
अहो!!बोलों तो सही
शरबत में क्या क्या मिलायें हो?

नजर बदल गयीं या नजारे बदल गये
रू ब रू  हो तो सही..
पर कैसा भ्रम है..
ये..आँखों पे अहो!!
आज कौन सा चश्मा सजाये हो?
पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍️

Mar 6, 2023

रंग बरसे

 


रंग बरसे

रंगों का अब इंतजाम ..बस करों,
होली पे ये इल्जाम ..बस करों

शिकायत अबकी हम से न होगी,
सुर्ख़ आरिज़ के अंजाम..बस करों।

बरजोरी पिया की आज भली लगें,
झूठी शिकायत ओ' शाम..बस करों,

आना जाना,रस्म रिवाज रोज रोज की
रिवायतें औ बहाने सरेआम....बस करों,

मलंग मन,कस्तूरी सांसों मे घुल रही
जाते-जाते आँखों के इशारे
..बस करों।


पम्मी सिंह'तृप्ति'

Jan 6, 2023

है..सरमा पे कुछ दिन की..


अंदाज ए गुफ्तगूं ,अंज क्या बदला
समा,रंग,बहार का,अकदार बदला
है..सरमा पे कुछ दिन की महफिल
लहजा ए जिंदगी का गुलजार बदला।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'

(सरमा-सर्दी, जाड़ा
अकदार -मूल्य, मापदंड, अंज-पृथ्वी)

Dec 31, 2022

शउर बता कर गुज़रता अबके बरस..

 


शउर बता रहा वरस...

शउर बता कर गुज़रता अबके वरस
रिश्तों के गिरहें को सुलझाता अबके वरस

मेरी उम्र की तरुणाई को ले चला ये
कुछ जिंदगी में विश्वास जताता अबके वरस

टूट कर जिंदगी तो जी ही नहीं जाती
गिरकर संभलने को सौगात बताता अबके वरस

न जी भर के हँसें , न जी भर रो सकें
भूलें बिसरे बातों पे यकीं दिलाता अबके बरस

रीता अंतस भी, भीगी भाव बहकी - बहकी
इक कसक दे,धनक दिखाता अबके वरस
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
दिल्ली

Oct 7, 2022

इक कसक रह गई...


 

💐💐💐

जाते जाते इक कसक रह गई

 मैं पहुंची पर आप सो गई,

तंग हो गई है दामन की दुआएँ आजकल,

पर,जिंदगी की इम्तिहान बड़ी हो गई।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'

💐💐💐

सब बोलते हैं तुम तो उषा की भोर हो,

भीगी हुई शाम हो चली हो,वही शोर हो।


इक साड़ी और बाली अब भी पास- पास है,

उनमें समायी खुशबू,वो शीरीं बहुत खास है।


अधिकतर धुंधली सी तस्वीरे उभर आती हैं,

और,मेरे तआरुफ़ की ख़ैर ओ ख़बर आती हैं।


राख कुरेद कर हासिल कुछ नहीं होता,

मेरी रौनकें,कहकशां के रास्ते इधर आती है।


सलीके से गर दिल की बात कहें तो,

शहर के भीड़ में भी तन्हाई की ख़बर आती है।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

Jul 17, 2022

धागे समेट लूँ..

 



ग़ज़ल

 आँखों से महव ए ख्वाब, भुलाया न जाएगा,

 अश्कों को रोज- रोज, मिटाया न जाएगा।

 

 हर पल लगें कुछ छूट रहा स्याह ख्वाब से,

  दिल में अब शाद ख्याल, सजाया न जाएगा।

  

  दौरे सफर में आज, कल की कुछ खबर नहीं,

  बेकार की उम्मीद अब' निभाया न जाएगा।

भीगे हुए पल ओढ कर, धागे समेट लूँ,

जाते लम्हों  को यूँ अब गवाया न जाएगा।


औरों की क्या हम बात करें क्यूँ, गुम खुद हुये

हर बात के  किस्से अब, लिखाया न जाएगा।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

स०स०११७२७/२०२१

Apr 29, 2022

तवील राहों के किस्से..

 







होती है इन रिश्तों से किरदारों की बारिशें

कि इक मैं हूँ इक तुम हो... हमारी... तवील राहों के  किस्से।


इक मैं हूँ.

भरू रंग कौन सा आँगन में...पिया बोल दे

भीगू आज मैं किस सावन में...पिया बोल दे

होगी जन्म-जन्मांतर की बातें... फिर कभी,

आज भरूँ मांग किस दर्पण से... पिया बोल दे।


इक तुम हो..

लाऊँ वो लफ्ज़ कहाँ से जो सिर्फ तुझें सुनाई दें,

सजाऊँ वो चाँद कहाँ पर जो सिर्फ तुझें दिखाई दें,

बताएँ क्या इन रिश्तों के तासीर का आलम तुम्हें, 

बुनू वो आसमां कहाँ पर जो सिर्फ तुझें नुमाई दें।

पम्मी सिंह 'तृप्ति'

Women's rights

 Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय)  ( article on women...