अनभिज्ञ हूँ काल से सम्बन्धित सारर्गभित बातों से , शिराज़ा है अंतस भावों और अहसासों का, कुछ ख्यालों और कल्पनाओं से राब्ता बनाए रखती हूँ जिसे शब्दों द्वारा काव्य रुप में ढालने की कोशिश....
Mar 7, 2023
रंग,रुबाई अंग -अंग में..
Mar 6, 2023
रंग बरसे
शिकायत अबकी हम से न होगी,
सुर्ख़ आरिज़ के अंजाम..बस करों।
बरजोरी पिया की आज भली लगें,
झूठी शिकायत ओ' शाम..बस करों,
रिवायतें औ बहाने सरेआम....बस करों,
मलंग मन,कस्तूरी सांसों मे घुल रही
जाते-जाते आँखों के इशारे..बस करों।
Jan 6, 2023
है..सरमा पे कुछ दिन की..
समा,रंग,बहार का,अकदार बदला
है..सरमा पे कुछ दिन की महफिल
लहजा ए जिंदगी का गुलजार बदला।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
(सरमा-सर्दी, जाड़ा
अकदार -मूल्य, मापदंड, अंज-पृथ्वी)
Dec 31, 2022
शउर बता कर गुज़रता अबके बरस..
Oct 7, 2022
इक कसक रह गई...
💐💐💐
जाते जाते इक कसक रह गई
मैं पहुंची पर आप सो गई,
तंग हो गई है दामन की दुआएँ आजकल,
पर,जिंदगी की इम्तिहान बड़ी हो गई।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
💐💐💐
सब बोलते हैं तुम तो उषा की भोर हो,
भीगी हुई शाम हो चली हो,वही शोर हो।
इक साड़ी और बाली अब भी पास- पास है,
उनमें समायी खुशबू,वो शीरीं बहुत खास है।
अधिकतर धुंधली सी तस्वीरे उभर आती हैं,
और,मेरे तआरुफ़ की ख़ैर ओ ख़बर आती हैं।
राख कुरेद कर हासिल कुछ नहीं होता,
मेरी रौनकें,कहकशां के रास्ते इधर आती है।
सलीके से गर दिल की बात कहें तो,
शहर के भीड़ में भी तन्हाई की ख़बर आती है।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
Jul 17, 2022
धागे समेट लूँ..
ग़ज़ल
आँखों से महव ए ख्वाब, भुलाया न जाएगा,
अश्कों को रोज- रोज, मिटाया न जाएगा।
हर पल लगें कुछ छूट रहा स्याह ख्वाब से,
दिल में अब शाद ख्याल, सजाया न जाएगा।
दौरे सफर में आज, कल की कुछ खबर नहीं,
बेकार की उम्मीद अब' निभाया न जाएगा।
भीगे हुए पल ओढ कर, धागे समेट लूँ,
जाते लम्हों को यूँ अब गवाया न जाएगा।
औरों की क्या हम बात करें क्यूँ, गुम खुद हुये
हर बात के किस्से अब, लिखाया न जाएगा।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
स०स०११७२७/२०२१
Apr 29, 2022
तवील राहों के किस्से..
होती है इन रिश्तों से किरदारों की बारिशें
कि इक मैं हूँ इक तुम हो... हमारी... तवील राहों के किस्से।
इक मैं हूँ.
भरू रंग कौन सा आँगन में...पिया बोल दे
भीगू आज मैं किस सावन में...पिया बोल दे
होगी जन्म-जन्मांतर की बातें... फिर कभी,
आज भरूँ मांग किस दर्पण से... पिया बोल दे।
इक तुम हो..
लाऊँ वो लफ्ज़ कहाँ से जो सिर्फ तुझें सुनाई दें,
सजाऊँ वो चाँद कहाँ पर जो सिर्फ तुझें दिखाई दें,
बताएँ क्या इन रिश्तों के तासीर का आलम तुम्हें,
बुनू वो आसमां कहाँ पर जो सिर्फ तुझें नुमाई दें।
पम्मी सिंह 'तृप्ति'
Women's rights
Grihshobha is the only woman's magazine with a pan-India presence covering all the topics..गृहशोभा(अप्रैल द्वितीय) ( article on women...
-
तुम चुप थीं उस दिन.. पर वो आँखों में क्या था...? जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की, तमाम गुजरे, पलों के...
-
कहने को तो ये जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत असबाब और हम न जाने किन चीजों में उलझे रहते है. हाल चाल जानने के लिए किसी ने पू...
-
फितूर है..ये, कई दफा सोचती हूँ.. बड़ा अच्छा होता जो 'मैं' तुम्हारे किरदार में होती.. मैं तुम होती और मेरी जगह त...